Saturday, 31 August 2013
(भाद्रपद कृष्ण दशमीं, वि.सं.-२०७०, शनिवार)
परिस्थिति का सदुपयोग
परिस्थिति का सदुपयोग करने वाला प्रतिकूल परिस्थिति के परिवर्तन के लिए विशेष प्रयत्न नहीं करता, प्रत्युत् अपने ही परिवर्तन का प्रयत्न करता है। यह नियम है कि अपना परिवर्तन करने से कालान्तर में परिस्थिति भी स्वत: बदल जाती है । अपना परिवर्तन बिना किए, परिस्थिति किसी भी प्रकार अनुकूल नहीं होती । अत: यह निर्विवाद सिद्ध है कि प्रतिकूल परिस्थिति आने पर अपने परिवर्तन का यथोचित प्रयत्न करना चाहिए ।
जो प्राणी परिस्थिति के अतिरिक्त परिस्थिति से अतीत किसी अस्ति-तत्व की स्वीकृति नहीं करते प्रत्युत् यही भाव रखते हैं कि हमको तो सुन्दर-सुन्दर अनुकूल परिस्थितियों की आवश्यकता है, उनके लिए भी परिस्थिति का सदुपयोग करना अनिवार्य है, क्योंकि प्राकृतिक विधान (Natural Law) प्रत्येक प्राणी की रुचि की पूर्ति में समर्थ है । अत: वर्तमान परिस्थिति का सदुपयोग करने से ही कर्ता को रुचि के अनुरूप उत्कृष्ट परिस्थिति प्राप्त होती है । यह निर्विवाद सत्य है कि किसी भी वस्तु की उत्पत्ति किसी उत्पत्ति-विनाश-रहित आधार के बिना नहीं हो सकती । अत: परिस्थिति से अतीत अस्ति-तत्त्व अवश्य है ।
प्राकृतिक विधान किसी भी परिस्थिति में आबद्ध नहीं रहने देता प्रत्युत् योग्यता के अनुसार त्याग का ही पाठ पढ़ाता है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु स्वत: विकास पाकर मिट जाती है । इससे यह भली प्रकार ज्ञात होता है कि प्रत्येक परिस्थिति के त्याग से अथवा उसके दिये हुए ऐश्वर्य से विश्व की सेवा करके परिस्थिति से अतीत प्रेमपात्र की ओर जाना अनिवार्य है । यही परिस्थिति का वास्तविक सदुपयोग है । विचारशील का विचार, योगी का योग, प्रेमी का प्रेम जिस परम तत्व में विलीन होता है, उसी में परिस्थिति का सदुपयोग करने वाला भी विलीन होता है, क्योंकि सच्चाई में कल्पना-भेद भले ही हो, किन्तु सत्ताभेद नहीं होता। अत: वर्तमान परिवर्तनशील परिस्थिति का सदुपयोग उन्नति का सुगम साधन है ।
- 'सन्त-समागम भाग-2' पुस्तक से, (Page No. 50-51) ।























