Wednesday, 04 January 2012
(पौष शुक्ल एकादशी, वि.सं.-२०६८, बुधवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1
अगर आपको हित (संसार के हित का) का काम नहीं करना है तो मैं आपको मजबूर नहीं करता । आप बिल्कुल मत कीजिए । आपके भलाई न करने से संसार की बहुत बड़ी हानि नहीं हो जाएगी, लेकिन बुराई मत कीजिए। अगर आप भलाई नहीं करेंगे तो आपकी एक हानि हो जाएगी कि आप संसार में आदर के योग्य नहीं रहेंगे । यह आपकी हानि हो जाएगी, लेकिन आपके भला न करने से संसार की कोई हानि नहीं होगी ।
तात्पर्य क्या निकला ? कि बुराई-रहित होने से संसार का लाभ होता है और भलाई करने से अपना व्यक्तिगत लाभ होता है। अगर आपको व्यक्तिगत लाभ चाहिए तो भलाई कीजिए, लेकिन केवल भलाई से काम नहीं चलेगा । कुछ लाभ होगा, कुछ लाभ मिलेगा किन्तु आप अचाह हो जाइए, कुछ मत चाहिए और उससे भी आगे का जीवन चाहिए तो प्रेमी हो जाइए । किसके? जिसको नहीं देखा है, उसके अथवा दूसरे शब्दों में कहें, सभी के। सभी के प्रेमी हो जाइए ।
सभी के प्रेमी होने पर जगत् और परमात्मा दोनों आ गए। जिसको नहीं देखा है उसके प्रेमी होने पर परमात्मा आ गया। तो आप प्रेमी हो जाएँगे, तो आपको जीवन मिलेगा । स्वाधीन हो जाएँगे तो आपको जीवन मिलेगा, आप अगर भले हो जाएँगे, तो आपको जीवन मिलेगा । अगर आप बुराई-रहित हो जाएँगे, तो आपको जीवन मिलेगा । जीवन आपको मिल सकता है । ये सभी बातें आपके हमारे जीवन में रह सकती हैं, आ सकती हैं । जब चाहे तब । अभी चाहें तो अभी सदा के लिए बुराई-रहित हो सकते हैं। अभी चाहें तो भलाई कर सकते हैं । अभी चाहें तो अचाह हो सकते हैं । अभी चाहें तो प्रेमी हो सकते हैं । इसमें कोई सन्देह की बात नहीं है ।
तो मैं आपसे निवेदन कर रहा था कि जीवन का जो सबसे सुन्दर चित्र है, जीवन की जो सबसे अच्छी तस्वीर है, उसकी प्राप्ति में हम सब समान हैं । और जो भाई, परिस्थितियाँ हैं, वे तो पिता-पुत्र की भी एक नहीं हैं । पति-पत्नी की भी एक नहीं हैं। सहोदर बन्धुओं की भी एक नहीं हैं । ये जो एक नहीं हैं, वह साध्य नहीं है; साधन-सामग्री है ।
विचार कीजिए कि जिस चीज में भिन्नता है वह साध्य नहीं हो सकता । साध्य में भिन्नता नहीं होती, अभिन्नता होती है; एकता होती है । जिसमें भिन्नता है वह साध्य नहीं है; साधन-सामग्री है । साधन-सामग्री चाहे जैसी हो, उसका सदुपयोग करना होगा । उसके सदुपयोग से साध्य की प्राप्ति होगी । तो आपकी जो प्राप्त परिस्थिति है, जीवन नहीं है; साधन-सामग्री है ।
- 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 20-21)
तात्पर्य क्या निकला ? कि बुराई-रहित होने से संसार का लाभ होता है और भलाई करने से अपना व्यक्तिगत लाभ होता है। अगर आपको व्यक्तिगत लाभ चाहिए तो भलाई कीजिए, लेकिन केवल भलाई से काम नहीं चलेगा । कुछ लाभ होगा, कुछ लाभ मिलेगा किन्तु आप अचाह हो जाइए, कुछ मत चाहिए और उससे भी आगे का जीवन चाहिए तो प्रेमी हो जाइए । किसके? जिसको नहीं देखा है, उसके अथवा दूसरे शब्दों में कहें, सभी के। सभी के प्रेमी हो जाइए ।
सभी के प्रेमी होने पर जगत् और परमात्मा दोनों आ गए। जिसको नहीं देखा है उसके प्रेमी होने पर परमात्मा आ गया। तो आप प्रेमी हो जाएँगे, तो आपको जीवन मिलेगा । स्वाधीन हो जाएँगे तो आपको जीवन मिलेगा, आप अगर भले हो जाएँगे, तो आपको जीवन मिलेगा । अगर आप बुराई-रहित हो जाएँगे, तो आपको जीवन मिलेगा । जीवन आपको मिल सकता है । ये सभी बातें आपके हमारे जीवन में रह सकती हैं, आ सकती हैं । जब चाहे तब । अभी चाहें तो अभी सदा के लिए बुराई-रहित हो सकते हैं। अभी चाहें तो भलाई कर सकते हैं । अभी चाहें तो अचाह हो सकते हैं । अभी चाहें तो प्रेमी हो सकते हैं । इसमें कोई सन्देह की बात नहीं है ।
तो मैं आपसे निवेदन कर रहा था कि जीवन का जो सबसे सुन्दर चित्र है, जीवन की जो सबसे अच्छी तस्वीर है, उसकी प्राप्ति में हम सब समान हैं । और जो भाई, परिस्थितियाँ हैं, वे तो पिता-पुत्र की भी एक नहीं हैं । पति-पत्नी की भी एक नहीं हैं। सहोदर बन्धुओं की भी एक नहीं हैं । ये जो एक नहीं हैं, वह साध्य नहीं है; साधन-सामग्री है ।
विचार कीजिए कि जिस चीज में भिन्नता है वह साध्य नहीं हो सकता । साध्य में भिन्नता नहीं होती, अभिन्नता होती है; एकता होती है । जिसमें भिन्नता है वह साध्य नहीं है; साधन-सामग्री है । साधन-सामग्री चाहे जैसी हो, उसका सदुपयोग करना होगा । उसके सदुपयोग से साध्य की प्राप्ति होगी । तो आपकी जो प्राप्त परिस्थिति है, जीवन नहीं है; साधन-सामग्री है ।
- 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 20-21)