Tuesday, 3 January 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Tuesday, 03 January 2012
(पौष शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०६८, मंगलवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1

        भाई जो मिला हुआ (संसार से मिला हुआ) सा लगता है, वह वास्तव में मिला हुआ है नहीं । मिला हुआ किसे कहते हैं ? अपनी भाषा में कहें तो जो अलग न हो । जो अलग हो जाय, वह मिला हुआ कैसा ? आप बताओ, ईमानदारी से तुमने जाग्रत में, स्वप्न में, सुषुप्ति में - तीनों अवस्थाओं को सामने रख लो । जाग्रत में कोई ऐसी अवस्था, वस्तु, परिस्थिति देखी है, जो अलग न हो । स्वप्न में कोई ऐसी अवस्था, वस्तु, परिस्थिति देखी है, जो अलग न हो । सुषुप्ति में जो जड़ता आती है, उस जड़ता में जो देखा हो वह अलग न होता हो ।

        जड़ता भी सदैव नहीं रहती । अवस्था, वस्तु, परिस्थिति भी सदैव नहीं रहती । जो सदैव रहता ही नहीं, उसे मिला कैसे मानते हो प्यारे ! वह मिला कैसे हो गया, जो सदैव रहेगा नहीं । अभी जैसा दीखता है, वैसा है नहीं । तब भी कहते हो कि मुझे मिल गया, मुझे मिल गया ! मुझे इतना धन मिल गया है, कि मेरा बैंक में एकाउंट इतना है । मैं तुम्हें चैलेंज देता हूँ कि बैंक में तुम्हारा एकाउंट रह जाएगा और वह तुम्हारे काम नहीं आएगा । या तो तुम ही छोड़कर चल बसोगे या बैंक ही फेल हो जाएगा अभी या कभी ।

        तो उसे मिला हुआ नहीं कहते जो सदैव न हो, सर्वत्र न हो और सभी के लिए न हो । वह मिला हुआ हो ही नहीं सकता। मिला हुआ वही हो सकता है, जो सदैव हो, सर्वत्र हो और सभी के लिए हो । उसी को मिला हुआ कह सकते हैं । जो सदैव नहीं है वह भी मिला हुआ नहीं है । जो सर्वत्र नहीं है, वह भी मिला हुआ नहीं; जो सभी के लिए नहीं, वह भी मिला हुआ नहीं । इसलिए संसार में कोई चीज हमें मिली है, यह बहुत बड़ा भ्रम है । यह भ्रम है, इस भ्रम को जीवन में से निकाल देना पड़ेगा ।

        हाँ अगर सुनकर मानना चाहते हैं तो मानिए कि जीवन अपने में है । जीवन का नाम परमात्मा रखा है, तो परमात्मा अपने में है । परमात्मा का नाम जीवन रखा है, तो जीवन अपने में है । आपने जीवन का नाम शान्ति रखा है, तो शान्ति अपने में है; अगर जीवन का नाम स्वाधीनता रखा है, तो स्वाधीनता अपने में है; अगर जीवन का नाम अमरत्व रखा है, तो अमरत्व अपने में है।

        अगर आपने अगाध अनन्त रस का नाम जीवन रखा है, तो अगाध अनन्त रस अपने में है । अगर सर्व दुखों की निवृति का नाम जीवन रखा है तो वह अपने में ही है । आपको जो चाहिए, वह आपमें है । यह अध्यात्म जीवन कहलाता है । अध्यात्म जीवन माने अपना जीवन कहलाता है । यह जीवन अपना है और अभी है । जो अपने में है, अभी है वह अध्यात्म जीवन कहलाता है।

        तो मैं यह निवेदन कर रहा था कि आप इस प्रकार की क्रान्ति अपने जीवन में लाइये कि शरीर के द्वारा, वस्तुओं के द्वारा, योग्यता के द्वारा कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जो दूसरों के लिए अहितकर हो ।
 
 - (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 18-20)