Monday 21 November 2011

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Monday, 21 November 2011
(मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पत्ति एकादशी, वि.सं.-२०६८, सोमवार)

"Swami Sharnanandji - in the words of Swami Ramsukhdasji"
(गत ब्लागसे आगेका)
        आपलोग भी आपसमें एक-दूसरे को सत्संगकी बातें सुनाया करो। इससे आपको भी लाभ होगा। सुनाने से ज्यादा लाभ होता है, यह हमने देखा है। शरणानन्दजी महाराज ने एक बात कही थी कि जो अच्छा सुनाता है, उसकी उम्र बढ़ जाती है ! लोग चाहते हैं कि इनसे बढिया बातें मिलती रहें । इसलिए सुननेवालोंकी सद्भावना के कारण वह जल्दी नहीं मरता । - 'बिन्दुमें सिन्धु' पुस्तक से (Page No. 85)

        एक आदमीने शरणानन्दजी महाराज से कहा कि जिनके पास ज्यादा धन है, वे आधा धन निर्धनको दे दें तो वे भी सुखी हो जायँ। शरणानन्दजी ने पूछा कि क्या तुम्हारा पक्का विचार है ? वह बोला कि हाँ, पक्का विचार है । शरणानन्दजी ने कहा कि मेरी आँखें नहीं है, तुम्हारे पास दो आँखें हैं तो एक आँख मेरेको दे दो। एक आँख से तुम्हारा भी काम चल जाएगा और मेरा भी। यह सुनते ही वह भाग गया, ठहरा नहीं ! कारण यह है कि लोग भीतरमें दूसरेका धन देखकर जलते हैं, पर बाहरसे निर्धनोंके हितकी कोरी बात बनाते हैं । इसलिए भगवान् के समान दूसरे का हित चाहनेवाला कोई नहीं है । - 'बिन्दुमें सिन्धु' पुस्तक से (Page No. 131)

        शरणानन्दजी से किसी ने पूछा कि महाराज, यहाँ कार्यक्रम पूरा करके आप कहाँ जाओगे ? वे बोले कि फुटबालको क्या पता कि खिलाड़ी उसे कहाँ लुढ़कायेगा ? जहाँ मालिक लुढ़कायेगा, वहीं जाएँगे । इस तरह शरणागत का भाव फुटबालकी तरह होता है। प्रिया और प्रियतमके खेलमें फुटबाल बन जाओ । दोनोंके चरणोंका स्पर्श हो और दोनों पीछे-पीछे भागें ! दोनों की जय-पराजय भी हमारे हाथमें ! हमें किसी की गरज नहीं और प्रिया-प्रियतम दोनोंको हमारी गरज ! - 'बिन्दुमें सिन्धु' पुस्तक से (Page No. 180)

         शरणानन्दजी की पुस्तकों में गीताजी की असली-असली गहरी बातें आती हैं । इतने जानकार होने पर भी उनमें अपनी जानकारी का अभिमान कभी आया ही नहीं ! उनकी मान्यता थी कि सिद्धान्त भगवान् का होता है, पर व्यक्ति अपना मानकर उसको अशुद्ध कर देता है । वे कहते थे कि संसार की कोई वस्तु व्यक्तिगत है ही नहीं । उन्होंने ऐसी बारीक-बारीक बढिया बातें बतायीं हैं, जो पहलेवाली बातों से भी विशेष हैं और उनसे आदमीमें बहुत जल्दी परिवर्तन होता है । - 'बिन्दुमें सिन्धु' पुस्तक से (Page No. 213)  

- (शेष आगेके ब्लागमें)- "बिन्दुमें सिन्धु" पुस्तक प्राप्ति स्थान (गीता प्रकाशन, गोरखपुर, Mobile : 09389593845, 07668312429) Email: radhagovind10@gmail.com
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