Sunday, 15 January 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 15 January 2012
(माघ कृष्ण सप्तमी, मकरसंक्रान्ति, वि.सं.-२०६८, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
प्रश्नोत्तरी

प्रश्न - स्वामीजी ! होली का क्या महत्व है ?
उत्तर - राग-द्वेष को अग्नि में जला दो, देहाभिमान को मिट्टी में मिला दो और प्रेम के रंग में रँग जाओ । 

प्रश्न - क्या व्यक्तिगत सम्पत्ति होनी चाहिए ?
उत्तर - व्यक्तिगत सम्पत्ति अवश्य होनी चाहिए, परन्तु उसे अपनी और अपने लिए नहीं मानना चाहिए ।

प्रश्न - स्वामीजी ! बोध किसे कहते हैं ?
उत्तर - सभी के मूल में एक अनुत्पन्न नित्य तत्व है । उसी की स्वतन्त्र सत्ता है । इसका ज्ञान होना ही बोध है ।

प्रश्न - स्वामीजी ! समाज के संघर्ष का क्या कारण है ?
उत्तर - हम दूसरों को क्षति पहुँचाकर जीना चाहते हैं । यही कारण है समाज में संघर्ष का ।

प्रश्न - महाराजजी ! मोह को बड़ा बलवान कहा जाता है, क्यों ?
उत्तर - देखो ! मायिक पदार्थ और ऐहिक सुख, यह सब नाशवान है। इनमें ममता करना तथा इनकी कामना करना - यह मनुष्य की भूल ही है । इनका वियोग तो एक दिन होगा ही । अगर इनमें ममता होगी, तो इनके वियोग-काल में दुःख ही होगा । इसलिए इनको दुःख रूप भी कहा है । अतः इन नाशवान और दुःखरूप पदार्थों के लिए अपना परलोक बिगाड़ देना बड़ी भारी भूल है ।
        सच्चा बुद्धिमान तो वही है, जिसने सुख-भोग की आसक्ति को त्याग कर भगवान् में आत्मीयता करके शरणागत होकर अपना लोक व परलोक बना लिया एवं अपना कल्याण कर लिया। भोगों की आसक्ति त्याग कर भगवान् की शरण ग्रहण करो। यही कल्याण का सही व सच्चा मार्ग है । इसी में मानव-जीवन की सफलता व सार्थकता है । 

प्रश्न - पता चलता है कि संसार है और आगे भी रहेगा । क्या यह सत्य है ?
उत्तर - यह जो मानते हो संसार है, यह गलत है । जो दिख रहा है उसकी स्थिति नहीं है । उसे क्यों मानते हो ?

-(शेष आगेके ब्लागमें) 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक से, (Page No. 17-18) ।