Sunday, 1 January 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 01 January 2012
(पौष शुक्ल अष्टमी, अंग्रेजी नववर्ष, वि.सं.-२०६८, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1

        अब ये जीवन के दो पहलू हैं । एक भौतिक जीवन है, जो हमें प्रेरणा देता है कि दूसरों के काम आओ । और एक अध्यात्म जीवन है, जो हमें बताता है कि काम-रहित हो जाओ । काम-रहित होने की प्रेरणा हमें अध्यात्म जीवन से मिलती है और उदार होने की प्रेरणा हमें भौतिक जीवन से मिलती है । तो उदार भी आप हो सकते हैं और काम-रहित भी आप हो सकते हैं । और प्रेमी होने की प्रेरणा हमें ईश्वरवाद से मिलती है ।

        अगर आप भौतिकवादी हैं, तो भूखे रह कर, नंगे रह कर, कठिनाई सह कर दूसरों के काम आएँ और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि अगर तुम दूसरों के लिए बोलते हो, दूसरों के लिए सुनते हो, दूसरों के लिए सोचते हो, दूसरों के लिए काम करते हो तो तुम्हारी भौतिक उन्नति होती चली जाएगी । कोई बाधा नहीं डाल सकता । अगर तुम केवल अपने लिए सोचते हो तो दरिद्रता कभी नहीं जाएगी ।

        संसार में रहने का तरीका है - दूसरों के काम आने की सोचते रहो । काम आते रहो । यथाशक्ति काम आते रहो और काम आने की सोचते रहो । कितना अच्छा हो कि मैं संसार के काम आ जाऊँ । कितना अच्छा हो कि मैं अपने में सन्तुष्ट हो जाऊँ । कितना अच्छा हो कि मैं प्रेमी हो जाऊँ । तो संसार के काम आने में आप स्वाधीन, अपने में सन्तुष्ट होने में आप स्वाधीन और प्रेमी होने में भी आप स्वाधीन ।

        अगर आप संसार के काम आ गए तो गरीबी गई । अपने में सन्तुष्ट हो गए तो गरीबी गई और प्रेम से भरपूर हो गए तो गरीबी गई । तो गरीबी मिटाने का उपाय प्रत्येक भाई में, प्रत्येक बहन में जन्मजात मौजूद है । कहीं बाहर से कुछ नहीं मिलनेवाला है । हाँ बाहर से जितना इकट्ठा करोगे, उतने ही भीतर से गरीब होते चले जाओगे ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 16-17)