Tuesday, 13 December 2011
(पौष कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०६८, मंगलवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1
गम्भीरता से विचार करें। महानुभाव, ईश्वरवाद का अर्थ अभ्यासवाद नहीं है, ईश्वरवाद का अर्थ विश्वासवाद है। ईश्वरवाद का अर्थ विचारवाद नहीं है, ईश्वरवाद का अर्थ आत्मीयतावाद है । ईश्वर में विश्वास करो और उसे अपना मानो और अभी मानो । इसका नाम ईश्वरवाद है ।
ईश्वरवाद का अर्थ यह भी नहीं है कि हम ईश्वरवादी होकर, ईश्वर को अपना मानकर ईश्वर के सामने सदा हाथ पसारे रहें। हमें यह दे दो, हमें यह दे दो, हमें यह दे दो । जो हमें चाहिए वह बिना माँगे ही हमें मिलता है और जो बिना माँगे नहीं मिलता है, वह माँगने से भी नहीं मिलता । तो फिर माँगने का अर्थ क्या हुआ? इसलिए यह विधान ही है कि जो हमें चाहिए, वह बिना माँगे मिल जाएगा । और माँगने से भी कुछ नहीं मिलता तो माँगने का कोई अर्थ ही नहीं है ।
यह मानव-जीवन है परमात्मा को अपने में, अभी प्राप्त करने के लिए । यह मानव-जीवन है मिली हुई वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य के द्वारा संसार के काम आने के लिए । यह मानव-जीवन है ज्ञानपूर्वक निर्मम, निष्काम, असंग होकर अपने में संतुष्ट होने के लिए । यह आपका-हमारा मानव-जीवन है ।
मानव-समाज में जो आज हलचल मची है, वह क्यों है ? वह केवल इसलिए है कि हम अपने में सन्तुष्ट नहीं हैं । वह किसलिए है कि हम संसार के काम आते नहीं हैं, वह केवल इसलिए है कि हम वर्तमान में अपने में अपने परमात्मा से मिलते नहीं हैं ।
ईश्वरवाद का अर्थ यह भी नहीं है कि हम ईश्वरवादी होकर, ईश्वर को अपना मानकर ईश्वर के सामने सदा हाथ पसारे रहें। हमें यह दे दो, हमें यह दे दो, हमें यह दे दो । जो हमें चाहिए वह बिना माँगे ही हमें मिलता है और जो बिना माँगे नहीं मिलता है, वह माँगने से भी नहीं मिलता । तो फिर माँगने का अर्थ क्या हुआ? इसलिए यह विधान ही है कि जो हमें चाहिए, वह बिना माँगे मिल जाएगा । और माँगने से भी कुछ नहीं मिलता तो माँगने का कोई अर्थ ही नहीं है ।
यह मानव-जीवन है परमात्मा को अपने में, अभी प्राप्त करने के लिए । यह मानव-जीवन है मिली हुई वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य के द्वारा संसार के काम आने के लिए । यह मानव-जीवन है ज्ञानपूर्वक निर्मम, निष्काम, असंग होकर अपने में संतुष्ट होने के लिए । यह आपका-हमारा मानव-जीवन है ।
मानव-समाज में जो आज हलचल मची है, वह क्यों है ? वह केवल इसलिए है कि हम अपने में सन्तुष्ट नहीं हैं । वह किसलिए है कि हम संसार के काम आते नहीं हैं, वह केवल इसलिए है कि हम वर्तमान में अपने में अपने परमात्मा से मिलते नहीं हैं ।
- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 11-12)