Monday, 5 March 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Monday, 05 March 2012
(फल्गुन शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०६८, सोमवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
सन्त हृदयोद्गार

69.    हमें उसको प्राप्त करना है कि जिसका हम त्याग कर ही नहीं सकते ।

70.    संसार परमात्मा की प्राप्ति में बाधक नहीं है, बल्कि सहायक है । उसका जो हम सम्बन्ध स्वीकार करते हैं, वही बाधक है ।

71.    जगत् की सत्ता स्वीकार करके भगवान् को प्राप्त करना चाहते हैं ? नहीं कर सकते । होगा क्या ? भगवान् आयेंगे, लेकिन आप कहेंगे कि मेरी स्त्री बीमार है, अच्छी हो जाय । भगवान् को प्राप्त करना चाहते थे कि स्वस्थ स्त्री को देखना चाहते थे ? जरा सोचिए ।
  
72.    अगर आप कभी भी यह अनुभव करें, कभी भी मानें कि शरीर अलग हो जाएगा, तो अभी मान लीजिए कि अभी अलग है। और इस बात में विश्वास करें कि कभी भी परमात्मा मिल जाएगा, तो अभी मान लीजिए कि अभी पास है, अभी भी मिला है।   

73.    परमात्मा से आप तो मिल सकते हैं, लेकिन शरीर द्वारा नहीं मिल सकते । आप अपने द्वारा मिल सकते हैं । हाँ, शरीर द्वारा परमात्मा की सृष्टि का कार्य कर सकते हैं ।     

74.    भगवान् क्या कोई खेती है कि आज बोयेंगे तो कल उपजेगा और परसों मिलेगा ? क्या भगवान् कोई वृक्ष है, जिसे आज लगायेंगे तो बारह वर्ष में फल लगेगा ? भगवान् ऐसी चीज नहीं है । भगवान् तो वर्तमान में भी ज्यों-का-त्यों मौजूद है ।

75.    सत्य का मार्ग इतना तंग है कि उसपर आप अकेले ही जा सकते हैं । इसलिए इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि के साथ रहने का मोह छोड़ दें । इनके साथ रहकर आप उस तंग रास्ते पर नहीं चल सकते । अकेले होने पर मार्ग अपने-आप दिखाई देगा ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्त हृदयोद्गार' पुस्तक से ।