Saturday, 19 November 2011
(मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी, वि.सं.-२०६८, शनिवार)
"Swami Sharnanandji - in the words of Swami Ramsukhdasji"
श्रीशरणानन्दजी महाराज का मार्मिक वचन है कि 'किसी को दुःख देकर जो सुख लेते हैं, वह परिणाम में अनन्त दुःख देता है और किसी को सुख देकर जो दुःख लेते हैं, वह परिणाम में महान आनन्द देता है।' - 'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से (Page No. 76)
सगुण और निर्गुण दोनों को ठीक तरह से जाननेवाले बहुत कम हैं। दोनों से उपर जाननेवाले बहुत कम महात्मा हुए हैं । शरणानन्दजी महाराज ऐसे महात्मा थे । परन्तु उनके बात को हरेक ठीक तरह से पकड़ नहीं पाता । - 'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से (Page No. 15)
(श्रीशरणानन्दजी महाराज) कहते हैं कि 'मैंने चेला बनाना शुरू किया; परन्तु चेलों की यह आदत है कि गुरूजी को कसकर पकड़ लेते हैं, भगवान् को नहीं पकड़ते । तो मैंने चेला बनाना छोड़ दिया। - 'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से (Page No. 27)
"शरणानन्दजी महात्मा क्या थे महाराज ! मेरे मनसे अगर आप पूछो तो नये दार्शनिक थे ! जैसे योग है, सांख्य है, पूर्व मीमांसा है, उत्तर मीमांसा है, न्याय है, छ: दर्शन है। छ: दर्शनोंसे निराला दर्शन है उनका। इतना किसने समझा है? किसने ख्याल किया है? बताओ । मैं ये बात बता सकता हूँ आपको । दार्शनिक, नये दार्शनिक ! परन्तु किसका विश्वास है? ज्ञानयोगमें, कर्मयोगमें, भक्तियोगमें विलक्षण बातें बतायी उन्होंने; उनकी बातें अकाट्य है; कोई खण्डन नहीं कर सकता उनकी बातोंका । आपके शास्त्र आपसमें खण्डन करते हैं एक-दूसरेका, मगर उनकी बातों का खण्डन करें कोई ! और प्रमाण देते नहीं हैं, किसी शास्त्र का, किसी पुस्तक का कोई प्रमाण नहीं । उनसे कहा था कि प्रमाण क्यों नहीं देते ? उन्होंने कहा कि जिसे संदेह हो वे प्रमाण दें, मुझे संदेह ही नहीं तो प्रमाण क्यों दें? प्रमाण कि क्या आवश्यकता है? उस संत को कितना आदर दिया हमलोगोंने? -स्वामी श्रीरामसुखदासजी "
सगुण और निर्गुण दोनों को ठीक तरह से जाननेवाले बहुत कम हैं। दोनों से उपर जाननेवाले बहुत कम महात्मा हुए हैं । शरणानन्दजी महाराज ऐसे महात्मा थे । परन्तु उनके बात को हरेक ठीक तरह से पकड़ नहीं पाता । - 'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से (Page No. 15)
(श्रीशरणानन्दजी महाराज) कहते हैं कि 'मैंने चेला बनाना शुरू किया; परन्तु चेलों की यह आदत है कि गुरूजी को कसकर पकड़ लेते हैं, भगवान् को नहीं पकड़ते । तो मैंने चेला बनाना छोड़ दिया। - 'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से (Page No. 27)
"शरणानन्दजी महात्मा क्या थे महाराज ! मेरे मनसे अगर आप पूछो तो नये दार्शनिक थे ! जैसे योग है, सांख्य है, पूर्व मीमांसा है, उत्तर मीमांसा है, न्याय है, छ: दर्शन है। छ: दर्शनोंसे निराला दर्शन है उनका। इतना किसने समझा है? किसने ख्याल किया है? बताओ । मैं ये बात बता सकता हूँ आपको । दार्शनिक, नये दार्शनिक ! परन्तु किसका विश्वास है? ज्ञानयोगमें, कर्मयोगमें, भक्तियोगमें विलक्षण बातें बतायी उन्होंने; उनकी बातें अकाट्य है; कोई खण्डन नहीं कर सकता उनकी बातोंका । आपके शास्त्र आपसमें खण्डन करते हैं एक-दूसरेका, मगर उनकी बातों का खण्डन करें कोई ! और प्रमाण देते नहीं हैं, किसी शास्त्र का, किसी पुस्तक का कोई प्रमाण नहीं । उनसे कहा था कि प्रमाण क्यों नहीं देते ? उन्होंने कहा कि जिसे संदेह हो वे प्रमाण दें, मुझे संदेह ही नहीं तो प्रमाण क्यों दें? प्रमाण कि क्या आवश्यकता है? उस संत को कितना आदर दिया हमलोगोंने? -स्वामी श्रीरामसुखदासजी "
"शरणानन्दजी महाराज ने अपने को बड़ा क्रान्तिकारी संन्यासी बताया है। इन्होंने ऐसी बारीक-बारीक बढ़िया बातें बतायी हैं, जिसमें पहले वाली बातें उनसे विशेष बातें बतायी हैं। शरणानन्दजी की बातों से बहुत जल्दी परिवर्तन होता है और सबके सिद्धान्त से अगाड़ी हो, ऐसी बातें निकाल के गये हैं। उसमें भी ये बात बतायी हैं, कि सबसे श्रेष्ठ आदमी कौन है? जो हरि का आश्रय लेता है और विश्राम करता है, दो बातें बतायी हैं। --स्वामी श्रीरामसुखदासजी"
- (शेष आगेके ब्लागमें) - "सीमा के भीतर असीम प्रकाश" पुस्तक प्राप्ति स्थान (गीता प्रकाशन, गोरखपुर, Mobile: 09389593845, 07668312429)
Email: radhagovind10@gmail.com