Monday 24 October 2011

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Monday, 24 October 2011
(कर्तिक कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०६८, सोमवार)
    
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रभुविश्वासी, प्रभुप्रेमी शरणागत कौन ?

        प्रिया भी वे (संसार के रचयिता), प्रीतम भी वे, दास भी वे, स्वामी भी वे, शरणागत भी वे और शरण्य भी वे । हम अपने में देखें कि ऐसे जो हम सबके अपने हैं, उनकी महिमा के अतरिक्त कोई और चीज तो नहीं रह गयी है, अथवा कहीं कोई चीज दिखाई तो नहीं देती, उनकी सत्ता से भिन्न अन्य कोई सत्ता तो नहीं मालूम होती? इस बात को हम अपने में देखें । हम देखें कि हम क्या बला हैं ? हमारा निर्माण उन्हीं ने किया है और अपने में से किया है, यह बात वे तुम्हारी वाणी से सुनना चाहते हैं । तुम्हारी वाणी से मतलब है कि यह वाणी उनकी ही दी हुई है, पर इस ढंग से दी है कि पाने वाले को यही मालूम होता है कि यह वाणी अपनी ही है । इससे अधिक आत्मीय भाव, अपनेपन का भाव और क्या हो सकता है ? उनकी दी हुई है और मालूम होती है कि अपनी है ।

        जब हम अपने को उन्हें इस भाव से देते हैं कि तेरा तुझको देता हूँ, यद्यपि यह तेरा है, लेकिन इस समय मेरा है । अब में तेरा दिया हुआ तुझको देता हूँ । तब वे स्वयं बड़े अधीर होने लगते हैं, आकुल-व्याकुल होने लगते हैं कि मैंने मानव को सब कुछ पहले ही दे दिया, अब मेरे पास क्या रह गया है कि जिससे में इसका बदला चूका सकूँ । मानव ने मेरा दिया हुआ अब मुझे दे दिया है । तब उनसे नहीं रहा जाता और वे कहने लगते हैं - में तेरा हूँ, में तेरा हूँ । जब प्रेमीजनों को उनकी यह आवाज सुनाई देती है, तो प्रेमीजन कहने लगते हैं - तुम्हीं हो, तुम्हीं हो, हर समय तुम्हीं हो, तुम्हीं मेरे जीवन हो, प्राणधन हो, प्राणेश्वर हो, प्राणवल्लभ हो, प्राणप्रिय हो, तुम्हीं हो, तुम्हीं हो । जब वे यह सुनते हैं, तब वे स्वयं कहने लगते हैं - नहीं-नहीं, मैं तेरा हूँ, मैं तेरा हूँ । यहाँ तक कहने लगते हैं कि तुने जो किया है, वह कोई नहीं कर सकता ।

        क्या दिया है तुने ? तुने अपने को मुझ पर न्यौछावर किया है, अपने आपको मेरे लिए खो दिया है । अब तो मैं तेरा ऋणी हूँ । तब प्रेमीजन कहने लगते हैं कि मेरा तो कभी कुछ था नहीं, तुम्हारा ही था और तुम्हीं थे, तुम्हीं हो, जो आकर्षण है वह तुम्हारा ही है, सब कुछ तुम्हीं से हुआ है, सब कुछ तुम्हीं में है । ऐसा जो प्रीति और प्रियतम का नित्य विहार है, यही मानव का निज-जीवन है । आप सच मानिए । उन्होंने क्या नहीं किया ? उन्होंने सभी के लिए सब कुछ किया है । वे स्वयं प्रेमियों से आशा रखते हैं कि कोई मुझे अपना कहता और अपना सर्वस्व मुझ पर उड़ेल देता ।

(शेष आगेके ब्लागमें) - संतवाणी भाग-6, प्रवचन 36 (अ)