Thursday, 22 March 2012
(चैत्र कृष्ण अमावस्या, वि.सं.-२०६८, गुरुवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 4
आप सोचिए, जब सुख की दासता हमारे आपके जीवन में नहीं होगी, दुःख का भय हमारे अपने जीवन में नहीं होगा, तब क्या होगा ? कि जो सुख की दासता और दुःख के भय से मुक्त है, उसमें अहं भाव नहीं रह सकता और जहाँ अहं भाव नहीं रह सकता वहाँ भेद नहीं रह सकता, और जहाँ भेद नहीं रह सकता, वहाँ योग और बोध अपने आप ही आ जाएगा । क्यों? क्योंकि सुख की दासता और दुःख के भय का नाश होते ही सीमित अहं-भाव का नाश हो जाएगा । यही अध्यात्म जीवन है ।
इससे सिद्ध हुआ कि प्रार्थना का जो दूसरा भाग है उसमें सुख की दासता और दुःख के भय से मुक्त होनेवाली बात है । वह अध्यात्म जीवन की पूर्णता है । और सेवा और त्याग के बल की जो बात है, वह भौतिक जीवन की पूर्णता है ।
भौतिक जीवन क्या है ? समस्त विश्व एक है और दूसरों का दुःख हमारा अपना ही दुःख है और दूसरों का सुख हमारा अपना ही सुख है । इससे बढ़कर तो कोई और भौतिकता है नहीं । तो भाई, भौतिकवाद कोई बुरी वस्तु नहीं है । भौतिकवादी का कर्तव्य क्या है ? भौतिकवादी का कर्तव्य है - सेवा और त्याग । भौतिकवाद की पराकाष्ठा क्या है ? सेवा और त्याग ।
- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी प्रवचनमाला, भाग-8' पुस्तक से, (Page No. 49-50) ।