Wednesday, 18 January 2012
(माघ कृष्ण दशमी, वि.सं.-२०६८, बुधवार)
जीवन का सत्य
आपके जीवन का जो सत्य है, वह आपके पुरुषार्थ का फल नहीं है । यह तो आपको स्वतः प्रदान किया गया है । यह ज्ञान से सिद्ध है कि मेरा कुछ नहीं है; मुझे कुछ नहीं चाहिए । मेरा किसी वस्तु पर अधिकार नहीं है - यह ज्ञान से सिद्ध है । और यह ज्ञान आपको मिला है । ऐसे ही प्रभु मेरे अपने हैं - यह आस्था से सिद्ध है । यह आस्था का तत्व आपको मिला है।
ऐसे ही बल के सदुपयोग से विश्वशान्ति की समस्या हल होती है, यह बल आपको मिला हुआ है । बल आपको मिला हुआ है; ज्ञान आपको मिला हुआ है; आस्था आपको मिली हुई है । यह जो बल, ज्ञान और आस्था का तत्व आपके जीवन में है, यह आपके किसी कर्म विशेष का फल नहीं है ।
यदि कर्म विशेष का यह फल होता, तब तो आप ऐसे यन्त्र बना सकते थे, जिनसे आपको आस्था, ज्ञान और बल मिल जाता। हाँ, बल के सदुपयोग से बल मिलता है, ज्ञान के सदुपयोग से मुक्ति मिलती है, आस्था के सदुपयोग से भक्ति मिलती है - यह आपके जीवन का अनुभव सिद्ध सत्य है ।
-(शेष आगेके ब्लागमें) 'साधन त्रिवेणी' पुस्तक से, (Page No. 9) ।
Truth of life
That which is the truth of your life is not the fruition of your travail, your laborious effort. It is innately profferred to you. It is realized in awareness that nothing is mine, i don't want anything whatever. That i don't possess anything is a realization through awareness. Accordingly the truth that God is my own is realized in faith. you are already provided with this elemental essence of faith.
Similarly, the problem of world-peace is resolved by bringing strength of energy into beneficent services to the people; strength, energy is already granted to you. You are endowed with energy, wisdom and faith. This quintessential strength, wisdom and faith in your life is not the fruit of any of your special work done by diligence of self-effort.
Had it been the upshot of special effort, some skilled exertion, you could have constructed the machinery to produce and procure faith, awareness and capable strength. Nevertheless, it is a truth proved through experience that strength flourishes by prudent, beneficent use, freedom is attained by reverence for awareness and devotion to God is earned through abiding by faith in him.
-(Remaining in the next blog) From the book 'Ascent Triconfluent', (Page No. 19)