Friday, 13 January 2012
(माघ कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०६८, शुक्रवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रश्नोत्तरी
प्रश्न - विवेक और बुद्धि में क्या अन्तर है ?
उत्तर - विवेक प्रकाश है, बुद्धि दृष्टि है । जैसे दृष्टि प्रकाश में काम करती है, वैसे ही बुद्धि विवेक के प्रकाश में काम करती है । विवेक का आदर करने से बुद्धि विवेकवती हो जाती है । विवेकवती बुद्धि की बड़ी महिमा है ।
प्रश्न - जिज्ञासा तीव्र क्यों नहीं होती ?
उत्तर - क्योंकि सन्देह की वेदना निर्जीव है ।
प्रश्न - कैसे समझें कि ममता का नाश हो गया ?
उत्तर - पेट भरने पर क्या आपने परोसने वाले से पूछा कि मेरा पेट भरा या नहीं ? ममता का त्याग होने पर आपको स्वतः विदित हो जाएगा ।
प्रश्न - मानव सेवा संघ के दर्शन में सेवा, त्याग और प्रेम की बात कही जाती है । इनमें से किसी एक को लेकर चला जाय या तीनों को ?
उत्तर - हर मानव को तीन शक्तियाँ विधान से मिली हैं -
1. करने की शक्ति (कर्तव्य-पथ)
2. जानने की शक्ति (ज्ञान-पथ)
3. मानने की शक्ति (विश्वास-पथ)
इन तीनों शक्तियों में से किसी एक शक्ति की प्रधानता होती है। अतः साधक में जिस शक्ति की प्रधानता हो, उसी को लेकर चलना चाहिए । शेष दो शक्तियों का विकास और सदुपयोग अपने आप हो जाएगा । साधक चाहे तो तीनों को साथ-साथ लेकर भी चल सकता है ।
प्रश्न - यह जानते हुए भी कि ममता और कामना जीवन में नहीं रखनी चाहिए, जब हमारे उपर कोई दुःख आता है तो दुखी होकर विचलित हो जाते हैं । इससे छुटकारा पाने का उपाय क्या है ?
उत्तर - जिन वस्तुओं और व्यक्तियों द्वारा हम सुख भोगने की आशा करते हैं, उनके वियोग से अवश्य ही दुखी होना पड़ेगा। अतः यदि हम चाहें कि दुःख से छुटकारा मिले, तो वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति एवं अवस्था से हमें सुख भोगना अथवा सुख की आशा करना छोड़ देना चाहिए । तब जीवन से दुःख अवश्य ही चला जाएगा ।
प्रश्न - बेईमान दुनियाँ में ईमानदारी आदमी कैसे जिए ?
उत्तर - बेईमानी का कारण लोभ है । निर्लोभता में दरिद्रता का नाश है ।
-(शेष आगेके ब्लागमें) 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक से, (Page No. 15-16) ।