Thursday, 15 December 2011
(पौष कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०६८, गुरुवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1
धूम मचाए हैं, गरीबी मिटेगी, गरीबी मिटेगी । कैसे मिटेगी ? कि सेठ को हटा दो सैक्रेट्री को रख दो । रानी के पेट से निकला हुआ राजा नापसन्द है तो जनता के पेट से निकला हुआ मिनिस्टर गरीबी मिटाएगा ? बिल्कुल भ्रमात्मक धारणा है । उन्होंने कहा साहब, गरीबी तब मिटेगी, जब सारे संसार में बहुत से कल-कारखाने हो जाएँगे । अरे, जिन देशों में बहुत से कल-कारखाने हो गए हैं, उनकी गरीबी नहीं मिटी। गरीबी मिटती तो क्या वे यह कहते ।
किसी पैसेवाले से जाकर मिलना और पूछना कि ईमानदारी से कहना - तुम्हारी तो गरीबी मिट गयी होगी । भगवान की कृपा है - टालमटोल करेगा । तो बता भाई तेरी गरीबी तो मिट गई होगी, फिर कर्जा क्यों देतो हो किसी को ? जब तुम्हारे मन में भी धन बढ़ाने की इच्छा है और मैं एक मजदूर हूँ मेरे मन में धन बढ़ाने की इच्छा है तो बताओ वस्तुस्थिति में क्या फर्क रह गया? क्या कर्ज बाँटनेवाला गरीब नहीं है ?
कर्ज लेनेवाला ही गरीब है क्या ? सोचो जरा ईमानदारी से। क्यों भैया ईमानदारी से बताओ - तुमको किसी से भय तो नहीं है? अभय हो गए, चिन्ता नाश हो गयी ? स्वाधीन हो गए, अमर हो गए ? अमर हो नहीं गया, निर्भय हो नहीं गया, स्वाधीन हो नहीं गया, चिन्ता मिटी नहीं और गरीबी मिट गयी ! कितना हम अपने आपको धोखा देते हैं, कितना हम अकारण दुखी होते हैं, परेशान होते हैं । अजी, गरीबी तो जीवन में इसलिए है क्योंकि आपको पराधीनता प्रिय है । गरीबी तो इसलिए है जीवन में क्योंकि आपको अनुदारता प्रिय है । गरीबी तो इसलिए है क्योंकि तुम्हें प्रेम अप्रिय है ।
जहाँ प्रेम की गंगा लहराती हो, जहाँ स्वाधीनता का जीवन हो, जहाँ उदारता का जीवन हो वहाँ कहाँ गरीबी ? लेकिन बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ता है कि आज हम मानव होकर मानव-जीवन का कितना अनादर कर रहे हैं, कितनी असावधानी बरत रहे हैं, कितना अपने को धोखा दे रहे हैं ।
- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 13-14)
किसी पैसेवाले से जाकर मिलना और पूछना कि ईमानदारी से कहना - तुम्हारी तो गरीबी मिट गयी होगी । भगवान की कृपा है - टालमटोल करेगा । तो बता भाई तेरी गरीबी तो मिट गई होगी, फिर कर्जा क्यों देतो हो किसी को ? जब तुम्हारे मन में भी धन बढ़ाने की इच्छा है और मैं एक मजदूर हूँ मेरे मन में धन बढ़ाने की इच्छा है तो बताओ वस्तुस्थिति में क्या फर्क रह गया? क्या कर्ज बाँटनेवाला गरीब नहीं है ?
कर्ज लेनेवाला ही गरीब है क्या ? सोचो जरा ईमानदारी से। क्यों भैया ईमानदारी से बताओ - तुमको किसी से भय तो नहीं है? अभय हो गए, चिन्ता नाश हो गयी ? स्वाधीन हो गए, अमर हो गए ? अमर हो नहीं गया, निर्भय हो नहीं गया, स्वाधीन हो नहीं गया, चिन्ता मिटी नहीं और गरीबी मिट गयी ! कितना हम अपने आपको धोखा देते हैं, कितना हम अकारण दुखी होते हैं, परेशान होते हैं । अजी, गरीबी तो जीवन में इसलिए है क्योंकि आपको पराधीनता प्रिय है । गरीबी तो इसलिए है जीवन में क्योंकि आपको अनुदारता प्रिय है । गरीबी तो इसलिए है क्योंकि तुम्हें प्रेम अप्रिय है ।
जहाँ प्रेम की गंगा लहराती हो, जहाँ स्वाधीनता का जीवन हो, जहाँ उदारता का जीवन हो वहाँ कहाँ गरीबी ? लेकिन बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ता है कि आज हम मानव होकर मानव-जीवन का कितना अनादर कर रहे हैं, कितनी असावधानी बरत रहे हैं, कितना अपने को धोखा दे रहे हैं ।
- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 13-14)