Sunday, 4 December 2011

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 04 December 2011
(मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी, वि.सं.-२०६८, रविवार)
     
सन्त हृदयोद्गार 

50.    प्रिय-से-प्रिय वस्तु तथा व्यक्ति का त्याग गहरी नींदके किए भला किसने नहीं किया ?

51.    ईश्वर, धर्म और समाज किसी के ॠणी नहीं रहते । जो इनके लिए त्याग करते हैं, उनका ये अवश्य निर्वाह करते हैं ।

52.    त्याग हो जाने पर त्याग का भास नहीं रहता; क्योंकि त्याग की स्मृति अथवा उसका अस्तित्व तभी तक प्रतीत होता है, जबतक त्याग होता नहीं ।

53.    इन तीन बातों से सारे जीवन की समस्याएँ हल हो जाती हैं - १) मुझे कुछ नहीं चाहिए, २) प्रभु अपने हैं, ३) सब कुछ प्रभु का है । यही जीवन का सत्य है। इसको स्वीकार करने से उदारता, स्वाधीनता और प्रेम प्राप्त होगा ।

54.    ध्यान किसी का नहीं करना है । किसी का ध्यान नहीं करोगे तो परमात्मा का ध्यान हो जाएगा । और किसी का ध्यान करोगे तो वह फिर किसी और का ही ध्यानमात्र रह जाएगा ।

55.    अगर परमात्मा के माननेवालों को परमात्मा की याद नहीं आती, और करनी पड़ती है - यह कोई कम दुःख की बात है ? यह कम आश्चर्य की बात है ? अरे, मरे हुए बुजुर्गों की याद आती है आपको, गये हुए धन की याद आती है आपको ! तो परमात्मा इतना घटिया हो गया कि उसकी याद आपको करनी पड़े? .......... याद नहीं आती है इसलिए कि आप उसे अपना नहीं मानते ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्त हृदयोद्गार' पुस्तक से ।