Saturday 24 September 2011

साधन-निधि

Saturday, 24 September 2011

(आश्विन कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०६८, शनिवार)

अपने लिये उपयोगी होना

(गत ब्लॉगसे आगेका)

वे सभी कामनायें, जो मिली हुई वस्तु, योग्यता और सामर्थ्य के द्वारा दूसरों के अधिकार की रक्षा में हेतु हैं, उनकी पूर्ति वर्तमान कर्तव्य-कर्म द्वारा हो सकती है । किन्तु उसके बदले में अपने लिये कुछ भी चाहिये, तो साधक निष्काम नहीं हो सकता । निष्काम कर्ता से ही कर्तव्य-पालन होता है । इस दृष्टि से साधक के जीवन में कामनाओं का कोई स्थान ही नहीं है ।

कर्तव्य-कर्म द्वारा प्राप्त परिस्थिति का सदुपयोग होता है । निष्काम होते ही परिस्थिति के सदुपयोग में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती । कामना-युक्त प्राणी प्राप्त परिस्थिति का सदुपयोग नहीं कर पाता और न अप्राप्त परिस्थितियों के चिन्तन से ही मुक्त होता है । इतना ही नहीं, परिस्थितियों की दास्ता में आबद्ध होकर वह दीनता और अभिमान की अग्नि में दग्ध होता रहता है । यह बड़ी ही शोचनीय दशा है, जो एकमात्र निष्काम होने से ही मिट सकती है ।

निष्कामता को अपनाते ही प्राप्त परिस्थिति का सदुपयोग करने की तथा अप्राप्त परिस्थितियों के चिन्तन से रहित होने की सामर्थ्य स्वतः आ जाती है । इतना ही नहीं, सभी परिस्थितियों, अर्थात् सुख-दुःख से अतीत के जीवन में प्रवेश सहज तथा स्वाभाविक हो जाता है । इस कारण निष्कामता को अपनाना प्रत्येक साधक के लिये अनिवार्य है ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

–‘साधन-निधि’ पुस्तकसे, पृष्ठ सं॰ १३-१४