Friday, 03
April 2015
(चैत्र शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७२, शुक्रवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
दर्शन
और नीति
प्राकृतिक विधान के अनुसार किये हुए का फल किसी के लिए अहितकर नहीं होता, अपितु दुखद तथा सुखद होता
है अथवा यों कहो कि व्यक्ति जो कुछ करता है, उससे सुख-दुःखयुक्त परिस्थिति उत्पन्न
होती है । प्रत्येक परिस्थिति स्वभाव से ही परिवर्तनशील तथा अभावयुक्त है । जो अभावरहित
तथा नित्य नहीं है, वह जीवन नहीं है । जो जीवन नहीं है, उससे
न तो नित्य सम्बन्ध ही रह सकता है और न आत्मीयता ही हो सकती है । इस दृष्टि से सभी
परिस्थितियाँ ऊपरी भेद होने पर भी समान ही अर्थ रखती हैं ।
प्राप्त परिस्थिति के सदुपयोग का दायित्व मानव पर है, उसके परिवर्तन की लालसा
निरर्थक है । लालसा तो वही सार्थक है, जो परिस्थितियों से अतीत के जीवन में प्रवेश
करा दे और जो नित्य प्राप्त में आत्मीयता प्रदान कर प्रियता की अभिव्यक्ति करने में
समर्थ हो । परिस्थितियों से अतीत की लालसा की पूर्ति निर्दोषता में निहित है । अत:
निर्दोषता को सुरक्षित रखने का दायित्व मानवमात्र पर है । दायित्व की पूर्ति और लक्ष्य
की प्राप्ति युगपद् है । अत: अपने प्रति न्याय करते ही निर्दोषता की अभिव्यक्ति,
दायित्व की पूर्ति एवं लक्ष्य की प्राप्ति स्वत: हो जाती है ।
- (शेष आगेके ब्लागमें) दर्शन और नीति
पुस्तक से, (Page No. 17) ।