Monday 30 June 2014

।। हरिः शरणम् !।।

Monday, 30 June 2014 
(आषाढ़ शुक्ल तृतीया, वि.सं.-२०७१, सोमवार)

साधन करने में कोई असमर्थ नहीं है

जीवन का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट विदित होता है कि साधन करने में न तो असमर्थता है और न असिद्धि; क्योंकि साधन साधक की वर्तमान योग्यता, रुचि तथा सामर्थ्य पर निर्भर है । अथवा यों कहो कि प्राप्त बल के सदुपयोग एवं विवेक के आदर में ही साधन निहित है । साधन करने के लिए किसी अप्राप्त बल, वस्तु, व्यक्ति आदि की अपेक्षा नहीं है और न उस ज्ञान की आवश्यकता है, जो अपने में नहीं है, अपितु जो है, उसी से साधन करना है ।

यह नियम है कि सामर्थ्य की न्यूनता तथा अधिकता साधन में कोई अर्थ नहीं रखती । जिस प्रकार पथिक यदि अपनी ही गति से अपने मार्ग पर चलता रहे, तो अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच ही जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक साधक यदि अपनी योग्यता, रुचि तथा सामर्थ्य के अनुरूप साधननिष्ठ हो जाए, तो सिद्धि अवश्यम्भावी है । इसमें संदेह के लिए कोई स्थान ही नहीं है, क्योंकि किसी भी साधक को वह नहीं करना है, जिसे वह नहीं कर सकता, परन्तु वह अवश्य करना है, जिसे वह कर सकता है ।

अब प्रश्न यह होता है कि जब साधन में असमर्थता और असिद्धि नहीं है, तब हम साधनपरायण क्यों नहीं हो पाते और हमें साध्य की उपलब्धि क्यों नहीं होती ? तो कहना होगा कि इस प्रश्न का उत्तर प्रत्येक साधक को स्वयं ही देना है, किसी अन्य से नहीं लेना है; क्योंकि जो जानते हुए भी नहीं मानता और करने की सामर्थ्य होते हुए भी नहीं करता, उसे न कोई जना सकता है और न कोई उससे करा सकता है ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘जीवन-दर्शन भाग 2' पुस्तक से, (Page No. 40-41)