Thursday, 12 June 2014

।। हरिः शरणम् !।।

Thursday, 12 June 2014 
(ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७१, गुरुवार)

वर्तमान जीवन का सदुपयोग

जीवन का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट विदित होता है कि वर्तमान परिवर्तनशील जीवन के सदुपयोग में ही नित्य जीवन और दुरुपयोग में ही मृत्यु निहित है । यद्यपि जन्म और मृत्यु दोनों एक ही परिवर्तनशील जीवन की दो अवस्थाएँ हैं, क्योंकि जन्म से ही मृत्यु आरम्भ हो जाती है और मृत्यु के अन्त में जन्म स्वाभाविक है । परन्तु यदि वर्तमान जीवन को साधन-युक्त बना दिया जाए, तो मृत्यु से पूर्व ही अमरत्व की प्राप्ति हो सकती है ।

अब विचार यह करना है कि वर्तमान जीवन का सदुपयोग क्या है ? तो कहना होगा कि अपने-आप आए हुए सुख-दुःख का सदुपयोग ही वर्तमान जीवन का सदुपयोग है । सुख का सदुपयोग उदारता में और दुःख का विरक्त होने में निहित है । उदारता सुख-भोग की आसक्ति को और विरक्ति सुख-भोग की कामना को खा लेती है ।

उदारता का अर्थ दूसरों के दुःख से दुःखी होकर प्राप्त सुख का सद्व्यय करना है और विरक्ति का अर्थ इन्द्रियों के विषयों से अरुचिका जागृत होना है । विषयों की अरुचि अमरत्व की जिज्ञासा जागृत करती है । ज्यों-ज्यों जिज्ञासा सबल और स्थाई होती जाती है, त्यों-त्यों भोगेच्छाएं स्वतः जिज्ञासा में विलीन होती जाती हैं । जिस काल में भोगेच्छाओं का सर्वांश में अन्त हो जाता है उसी काल में जिज्ञासा स्वत: पूरी हो जाती है, अर्थात् अमरत्व की प्राप्ति हो जाती है ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘जीवन-दर्शन भाग 2' पुस्तक से, (Page No. 34-35)