Sunday 11 May 2014

।। हरिः शरणम् !।।

Sunday, 11 May 2014 
(वैशाख शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७१, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
निष्कामता में ही सफलता है

प्रत्येक परिस्थिति प्राकृतिक न्याय है, उसके आदरपूर्वक सदुपयोग में ही सभी का हित निहित है । परन्तु कामना-अपूर्ति के भय और कामना-पूर्ति की आसक्ति के कारण हम परिस्थितियों में भेद करने लगते हैं तथा प्राप्त परिस्थिति के सदुपयोग की अपेक्षा परिस्थिति-परिवर्तन के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि जो सामर्थ्य वर्तमान परिस्थिति के सदुपयोग के लिए मिली थी, उसे अप्राप्त परिस्थिति की प्राप्ति के प्रयास में लगा देते हैं, जिससे प्राप्त परिस्थिति का भी सदुपयोग नहीं हो पाता और उत्कृष्ट परिस्थिति भी प्राप्त नहीं होती । प्राकृतिक नियम के अनुसार प्राप्त परिस्थिति के सदुपयोग से ही उत्कृष्ट परिस्थिति अथवा परिस्थितियों से असंगता प्राप्त होती है, जो वास्तविक निष्कामता है ।

अब यदि कोई यह कहे कि हम उस प्राकृतिक विधान का आदर कैसे करें, जो कामना-अपूर्ति के दुःख में हेतु है ? तो कहना होगा कि कामना-अपूर्ति का दुःख कामना-पूर्ति के सुख की दासता से मुक्त करने के लिए आया था, जिसे पाकर हम भयभीत हो गए । यह भूल गए कि कामना-पूर्ति के सुख से अतीत भी एक जीवन है, जो कामना-पूर्ति की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण है । इस दृष्टि से प्राकृतिक न्याय में हमारा हित ही निहित है । अत: उसका आदर करना अनिवार्य है ।

भौतिक विज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक वस्तु अनन्त है, उसमें कमी नहीं है । फिर भी हमें यदि वस्तुएँ प्राप्त नहीं हैं, तो समझना चाहिए कि हम वस्तुओं के अधिकारी नहीं हैं । प्रकृति के विधान में किसी से राग-द्वेष नहीं है, उसमें तो सभी के प्रति समानता है । अत: जो वस्तुएँ हमारे बिना रह सकती हैं अथवा हमें अप्राप्त हैं, उनकी अप्राप्ति मैं ही हमारा विकास निहित है ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘जीवन-दर्शन भाग 2' पुस्तक से, (Page No. 11-12)