Saturday 10 May 2014

।। हरिः शरणम् !।।

Saturday, 10 May 2014 
(वैशाख शुक्ल एकादशी, वि.सं.-२०७१, शनिवार)

निष्कामता में ही सफलता है

जीवन का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट विदित होता है कि निष्कामता ही सफलता की कुन्जी है । निष्कामता के बिना निर्दोषता नहीं आती और दोषरहित हुए बिना हम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते । दोषी की आवश्यकता तो किसी को भी नहीं होती, सभी को अपना साथी निर्दोष चाहिए । इस दृष्टि से निष्कामता जीवन की वास्तविक आवश्यकता है ।

अब विचार यह करना है कि निष्कामता प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ? तो कहना होगा कि निष्कामता उसे ही प्राप्त हो सकती है, जो वस्तु, अवस्था, परिस्थिति आदि से अपना मूल्य बढ़ा लेता है । यद्यपि कोई भी वस्तु, अवस्था, परिस्थिति ऐसी हो ही नहीं सकती, जो हमारे दिये हुए महत्व एवं सहयोग के बिना हम पर शासन कर सके, परन्तु हम इस रहस्य को भूल जाते हैं; प्रत्युत वस्तु, अवस्था, परिस्थितियों के आधार पर अपना मूल्य आँकने लगते हैं । बस, हमारी यही भूल हमें निष्काम नहीं होने देती ।

हाँ, यह अवश्य है कि प्राप्त परिस्थिति का सदुपयोग करना है पर न तो उसकी दासता में आबद्ध होना है और न किसी अप्राप्त परिस्थिति का आह्वान करना है; क्योंकि सभी परिस्थितियाँ समान अर्थ रखती हैं । कोई परिस्थिति किसी परिस्थिति की अपेक्षा भले ही सुन्दर प्रतीत हो, परन्तु वास्तविकता की दृष्टि से उनमें कोई भेद नहीं है; क्योंकि प्रत्येक परिस्थिति साधनरूप है, साध्यरूप नहीं । अत: प्रत्येक परिस्थिति का महत्व उसके सदुपयोग में है, किसी परिस्थिति-विशेष में नहीं । हमें प्राप्त परिस्थिति का आदर करना चाहिए, पर उससे ममता और उसमें जीवन-बुद्धि नहीं करनी चाहिए, अपितु साधन-बुद्धि रखनी चाहिए । ऐसा करने से बड़ी ही सुगमतापूर्वक परिस्थितियों से अतीत के उस जीवन पर विश्वास हो जाएगा, जो निष्कामता प्रदान करने में समर्थ है ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘जीवन-दर्शन भाग 2' पुस्तक से, (Page No. 10-11)