Friday, 3 January 2014

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Friday, 03 January 2014 
(पौष शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०७०, शुक्रवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
व्यर्थ-चिन्तन और उसका दुष्परिणाम – 1

दुःख आने पर भी हम दुःख के प्रभाव को नहीं अपनाते, सुख के चले जाने पर भी हम सुख की दासता को नहीं छोड़ते, फिर आप क्या सुख के हकदार हैं ? गौर तो करें जरा । जिन दिनों मेरा नाम विरक्त साधुओं में था, लँगोटी लगाये, नग-धड़ंग घूमता फिरता था । तब एक बार एक माँ ने, मैनपुरी के श्रीमन्नारायण अग्रवाल की माँ ने, देहली में मुझ से प्रश्न किया कि ईश्वर ने सृष्टि क्यों बनाई ? मैंने कहा - इससे आपको क्या परेशानी है ? उन्होंने कहा - नहीं, आपको बताना पड़ेगा । मैंने बड़ी ईमानदारी से कहा कि, “माँ, ईश्वर ने सृष्टि मेरे लिये बनाई” । यह सुनकर तो और भी चक्कर में पड़ गई । पुन: पूछा - ऐसी क्यों बनाई कि जिसमें इतना दुःख है? मैंने कहा -सृष्टिकर्ता ने ऐसा सोचकर उसे दुःखपूर्ण बनाया कि जिससे मैं ‘उसे’ भूल न जाऊँ । उसने सोचा, कहीं मुझे भूल न जाय, मुझसे अलग न हो जाय, इसलिये उसे दुःखमय बनाया । आप देख लीजिये, जीवन में आप देख लीजिये। जिस सृष्टी की आप निन्दा करते हैं, बुरा समझते हैं, उससे जब तक आप अपनी कामना पूरी नहीं करना चाहते, सृष्टी  आपको दिखती है क्या ? है किसी का अनुभव ? जब आप संकल्प पूरा करने का सुख भोगना चाहते हैं, तब सृष्टी  का भास होता है । अथवा निर्विकल्प स्थिति में सृष्टी का भास होता है ।

अच्छा, मैं आपसे पूछता हूँ कि अगर आप वह सृष्टि ऐसी बना देते हैं कि तुम्हारे सभी संकल्प पूरे हो जायँ, तो तुम न जाने कैसे संकल्प कर डालते। महाराज ! आपको अपने पर कंट्रोल है क्या ? देखिये, आपको बढ़िया सुख क्यों नहीं मिलता ? यह नहीं कि वह आपके भाग्य में नहीं । जरा ऊँचे दर्जे का दर्शन बोल रहा हूँ, घबड़ाना मत । इसलिये नहीं मिलता कि जो कह दिया, उसे करते नहीं । अगर तुम घटिया सुख को छोड़ सकते, तो बढ़िया मिले बिना रहता नहीं। आपके जीवन में अभिमान क्यों आता है ? केवल इसलिये आता है कि आप दूसरों को बुरा समझना बन्द ही नहीं करते । फिर अभिमान नहीं आयेगा ? आप भूखे क्यों रहते हैं ? इसलिये कि खिलाने में आपको मजा नहीं आता, खाने में मजा आता है । जितना दुःख आपके जीवन में है, वह एक मात्र सुख के प्रलोभन का नाश करने के लिये है । आपने तय कर लिया है कि हम सुख का अनुभव नहीं छोड़ेंगे । उधर विधान ने तय कर लिया है कि परिणाम-स्वरूप दुःख आपकी छाती पर चढ़े ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 95-96)