Thursday, 5 December 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Thursday, 05 December 2013 
(मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया, वि.सं.-२०७०, गुरुवार)

असाधन-रहित साधन - 2
                   
अल्प-से-अल्प साधन भी सिद्धिदायक होता है, परन्तु वह तभी सिद्धिदायक होता है, जब हम असाधन-रहित होकर साधन-रत हों, केवल तभी । इस सम्बन्ध में एक और गम्भीर बात है, और वह यह है कि आप जिसे साधन कहतें हैं, वह वास्तव में है क्या ? वह है साध्य का स्वभाव। साधन का अर्थ क्या है भैया ? जिससे साध्य की उपलब्धि हो और साधन का अर्थ क्या है ? कि जो साधक का जीवन हो । तो, जो साधन, साधक का जीवन नहीं बन पाता, अर्थात साधक और साधन में जब तक विभाजन दिखाई देता है, तब तक तो यही कहना पड़ेगा कि साधन का निर्माण नहीं हुआ । आप कह सकते हैं कि यह हम कैसे मान लें ? कुछ-न-कुछ तो साधन होता ही है । परन्तु भाई, जरा गम्भीरता से विचार करें, तो दिखाई देगा कि कुछ-न-कुछ साधन तो उसके जीवन में भी है कि जो साधन नहीं करते । आप पूछेंगे- कैसे ? अच्छा, कल्पना कीजिये, किसी ने सत्य बोलने का व्रत नहीं लिया; लेकिन क्या वह सभी से झूठ बोलता है ? क्या ऐसा कोई झूठ बोलने वाला देखा है आपने जो सभी से झूठ बोले, सदैव झूठ बोले और सर्वांश में झूठ बोले ? आपको एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा । अत: जिसने सत्य बोलने का व्रत नहीं लिया, आंशिक दृष्टि से तो वह भी सत्य बोलता है । तो, साधन का अर्थ यह नहीं है साहब, कि कुछ-न-कुछ तो जीवन में है ही ।

भैया, कुछ-न-कुछ साधन तो सभी के जीवन में रहता ही है । तो प्रश्न यह है कि जीवन में आंशिक असाधन क्यों है ? यह प्रश्न नहीं है कि 24 घण्टे में आप 10 घण्टे साधन करते हैं और 14 घण्टे क्यों नहीं करते - यह प्रश्न नहीं है । प्रश्न यह है कि 24 घण्टे में 23 घण्टे, 59 मिनट, 59/60 सेकेण्ड आप साधन करते हैं, किन्तु  1/60 सेकेण्ड का फिर असाधन क्यों है जीवन में ? जब इस दृष्टि से आप विचार करके देखेंगे कि हमारे जीवन में, चाहे अल्प-से-अल्प हो, असाधन है क्यों? जब इस बात पर विचार करेंगे और जब अपने जीवन में अपने असाधन को ठीक-ठीक जान लेंगे, देख लेंगे, सोच लेंगे, समझ लेंगे कि यह सचमुच हमारे जीवन में असाधन है और जिस वक्त अपने असाधन को देखेंगे, उस समय वह असाधन भूतकाल का मालूम होगा, वर्तमान का मालूम नहीं होगा । जिस समय आप अपना निरीक्षण कर रहे होंगे, उस समय असाधन करते हुए आप अपने को नहीं पायेंगे । उस समय तो आप अपने को बिलकुल निर्दोष पायेंगे; क्योंकि वर्तमान सभी का निर्दोष है ।

परन्तु निरीक्षण करने से आप यह जरूर जान पायेंगे कि भूतकाल में हमारे जीवन में अमुक असाधन था । और अमुक असाधन हमारे वर्तमान जीवन में है - ऐसा ईमानदारी से कोई व्यक्ति नहीं कह सकता । कोई कहे, महाराज ! मैं झूठ बोलता हूँ । यदि मैं पूछूँ कि यह जो तुम मुझसे कह रहे हो, यह झूठ है क्या? कहा, नहीं, ऐसा तो नहीं है । तो देखिये कि इस समय तो आप झूठ नहीं बोल रहे हैं, जरा विचार कीजिये । तो आज हम लोग करते क्या हैं ? माफ करेंगे प्रचारक महानुभाव, माफ करेंगे नेता महानुभाव, माफ करेंगे जिन्होंने गुरुपन का पेशा किया है । जिनका हृदय साधक की पीड़ा से पीड़ित है, उनसे मेरा यह कथन नहीं है; अपितु उनसे है, जिन्होंने यह पेशा कर लिया है । आप कहेंगे, आपको क्या पता? मुझको पता है । एक आदमी मेरे पास आया, बहुत दिन की बात है, बिहार का रहने वाला था । उसने कहा, 'मुझे क्या करना चाहिए ?’ मेरी जैसी आदत है उसके अनुसार मैंने उसकी रुचि और योग्यता को देखकर कुछ सुझाव दे दिया। इसके थोड़े दिन बाद ही आकर वह बोला, 'भगवान् ! यह आपका अपना चेलवा है।' मैंने पूछा, 'क्या?' जबाव मिला, 'यह मेरा चेला है ।' मैंने विस्मयपूर्वक कहा, 'तैने भी चेला बनाना शुरू कर दिया ?' मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि आज साधकों के पीछे तो गुरु पडा हुआ है हाथ धोकर और जनता के पीछे नेता पड़ा हुआ है और आपको मालूम ही होगा कि परिवार में जो पैसा कमाता है, वह परिवार की छाती पर चढ़ा हुआ है ! बड़ी ही दुर्दशा है आज मानव-समाज की ।



 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 53-55)