Wednesday, 25 December 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Wednesday, 25 December 2013 
(पौष कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७०, बुधवार)

वर्तमान निर्दोषता में आस्था - 2

आप स्वयं अपने सम्बन्ध में देखें कि क्या कारण है कि लोग मेरी ईमानदारी को, मेरी सहृदयता को, मेरी उदारता को महत्त्व नहीं देते? मेरे जानते, जिस गुण के साथ अहं लग जाता है, वह गुण भयंकर दोष में बदल जाता है । इसलिए भाई, मानव होने के नाते आपका जो महत्त्व है, वह वैभव होने के नाते नहीं है । वैभव वह रस नहीं दे सकता, जो रस मानवता में है, जो जीवन मानवता में है । जो महत्ता मानवता में है, वह महत्ता आपको किसी की उदारता से कभी भी नहीं मिल सकती, यह निर्विवाद सत्य है । इसलिये भाई, आप बड़े ही सुन्दर हैं ।

क्यों ? इसलिये कि आपका वर्तमान निर्दोष है, यों । आप जानते हैं अपनी भूल को, आप छोड़ सकते हैं अपनी भूल को । जब आप अपनी भूल को जानकर उसे छोड़ सकते हैं और वर्तमान आपका निर्दोष है, तो बताइये, आपको और क्या चाहिए ? आप तो सुन्दर हैं ही, इसमें कोई सन्देह थोड़े ही है । लेकिन यदि आप अपनी वर्तमान निर्दोषता को सुरक्षित नहीं रख रकते, की हुई भूल को दोहराना ही चाहते हैं, जानी हुई बुराई को करना ही चाहते हैं तो दुनियाँ में किसी की शक्ति नहीं है, जो आपको शान्ति दे सके, जो आपको प्रसन्न रख सके । आपकी शान्ति आपके अधीन है, आपकी प्रसन्नता आपके अधीन है, आपकी महिमा आपके अधीन है । यह स्वाधीनता मंगलमय विधान से प्रत्येक भाई को, प्रत्येक बहिन को मिली है । इस मिली हुई स्वाधीनता का आदर करें, उपयोग करें । आप अपने को दूसरों की दृष्टि में जैसा देखना चाहते हैं, अपनी दृष्टि में हो जायेंगे । यह कसौटी है कि जब हम अपनी दृष्टि में सुन्दर हो जाते हैं, तब सुन्दर कहलाने की रुचि नाश हो जाती है । आज यदि हम चाहते हैं कि लोग हमें भला समझें, तो उसका अर्थ है कि हम सचमुच उतने भले नहीं हैं । लोग तो भला समझते ही हैं, लोग तो भला समझेंगे ही; किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम भले हो गये । भले होने की कसौटी यह है - भले कहलाने की रुचि नाश हो जाय, जीवन में यह प्रश्न ही न आये कि लोग हमें भला समझें । जिसे यह मालूम होता है कि मैं ईमानदार हूँ लोग मुझे ईमानदार मानें, तो समझना चाहिए कि इसमें कोई बेईमानी छिपी हुई है ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 81-82)