Monday, 2 December 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Monday, 02 December 2013 
(मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७०, सोमवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
सत्संग एवं श्रम-रहित साधन की महत्ता - 3
                   
इसलिए मेरे भाई ! वस्तुओं के आश्रय से आप मानव-जीवन की पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकते । वस्तुओं का उत्पादन करें, वस्तुओं का सदुपयोग करें, वस्तुओं से व्यक्तियों की सेवा करें । आलसी-अकर्मण्य न बन जायें । लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर बाद आप उस जीवन के लिये प्रयास करें, जो जीवन बिना वस्तुओं के आपके पास है, जो जीवन बिना व्यक्तियों के सहयोग से मिल सकता है, उस जीवन के लिये भी आप आतुर रहें, व्याकुल रहें; उसको प्राप्त करने का प्रयास करें, इसी का नाम पुरुषार्थ है । तो मेरा नम्र निवेदन है कि हमारे-आपके सामने आज जो जीवन की घड़ियाँ मौजूद हैं, वे बड़ी सुनहरी घड़ियाँ हैं, वे बड़ी मूल्यवान् घड़ियाँ हैं । इतनी मूल्यवान कि यदि आप चाहें तो अपना सब कुछ देकर, बदले में एक घड़ी भी नहीं पा सकते । यानी आप किसी चीज के बदले में समय प्राप्त नहीं कर सकते । समय लगाकर आप न जाने क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं । इस मूल्यवान् समय को सत्संग के बिना खो देना अपने ही द्वारा अपना विनाश करना है ।

मेरा नम्र निवेदन है कि आप मानव हैं । आपके जीवन का बड़ा महत्त्व है, आपका बड़ा महत्त्व है । आप सत्संग के लिये मानव हैं और किसी उद्देश्य के लिये मानव नहीं हैं । जितने दोषों की उत्पत्ति होती है, जितने विकारों की उत्पत्ति होती है, संसार में जितने विप्लव मचते हैं, उसके मूल में, अगर आप गम्भीरता से देखेंगे, तो उसका कारण मिलेगा - असत् का रस । यदि आप सर्वतोमुखी विकास चाहते हैं, यदि आप अपना कल्याण और सुन्दर समाज का निर्माण चाहते हैं, तो आपको सत्संग अपनाना ही पड़ेगा । यही वह कार्यक्रम है जिसे प्रत्येक भाई, प्रत्येक बहिन प्रत्येक परिस्थिति में स्वाधीनतापूर्वक पूरा करके अपने कल्याण और सुन्दर समाज के निर्माण में भाग ले सकते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है । मेरा निवेदन है कि हम लोग उस सत्संग के बिना, जिसकी प्राप्ति में आप सर्वदा स्वाधीन हैं, चैन से न रहें । सत्संग होते ही असाधन का नाश होगा, अकर्त्तव्य का नाश होगा । और आप साधन से, कर्त्तव्य-परायणता से अभिन्न होंगे । यानी कर्त्तव्य-परायणता और आपका जीवन, साधन और आपका जीवन, उदारता, परम शान्ति, स्वाधीनता और प्रेम तथा आपका जीवन एक होगा । उदारता से आप जगत के लिए उपयोगी होंगे, शान्ति और स्वाधीनता से आप अपने लिए उपयोगी होंगे, प्रेम से आप प्रभु के लिए उपयोगी होंगे । यह है आपके मानव-जीवन की महिमा, जो एक-मात्र सत्संग से साध्य है ।


 - ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 48-49)