Monday, 16 December 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Monday, 16 December 2013 
(मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७०, सोमवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
जानने, मानने तथा करने का स्वरूप-विवेचन - 2

जब तक मानव अपना गुरु नहीं बनेगा, अपना नेता नहीं बनेगा, अपना शासक नहीं बनेगा, तब-तक उसके जीवन में विस्मृति रहेगी । और जब तक विस्मृति रहेगी, तब तक अकर्त्तव्य रहेगा । और जब तक अकर्त्तव्य रहेगा, तब तक असमर्थता रहेगी । और जब तक असमर्थता रहेगी - विनाश होगा, विनाश । इसलिए भाई, आप मानव हैं, आप बड़े सुन्दर हैं । आप यह न सोचिये कि आपकी सुन्दरता आपके बँगले पर निर्भर है, आप यह न सोचिए कि आपकी सुन्दरता आपके पद पर निर्भर है, आप यह न सोचिये कि आपकी सुन्दरता आपकी योग्यता पर निर्भर है । आपकी सुन्दरता इस बात पर निर्भर है कि आप मानव हैं । आप विचार करें कि मानव होने के नाते आप कितने सुन्दर हैं, और किसी पद पर आसीन होने के बाद कितने सुन्दर हैं ! विचार करें । अगर आप केवल मानव होने से सुन्दर नहीं हैं तो आप जहाँ होंगे, वहाँ अनुपयोगी सिद्ध हो जायेंगे । यह मेरी बात नहीं है । यह प्रत्येक विचारशील की अपनी बात है, प्रत्येक भाई और बहिन की अपनी बात है । मानव होने से जिसका महत्त्व नहीं है, उसका महत्त्व क्या किसी पद विशेष से होगा? कभी नहीं होगा । क्यों ? मानव कहते ही उसे हैं, जिसने मिले हुए का दुरुपयोग न किया हो । मानव कहते ही उसको हैं, जिसने जाने हुए का अनादर न किया हो। मानव कहते ही उसको हैं, जिसने सुने हुए में अश्रद्धा न की हो । मानव उसे नहीं कहते कि जो बहुत कुछ जानता है, पर उसका आदर नहीं करता है । अगर आप अपने जाने हुए का आदर नहीं करते, तो क्या आपसे यह आशा की जा सकती है कि आप अपने नेता की बात मानेंगे ? हमारे नेता ने कहा था कि हम विभाजन नहीं पसन्द करेंगे, क्या हमने मानी ? हमारे गुरु ने कहा - जानते हो क्या कहा? कहा कि बेटा ! जब तुम आजाद हो जाओगे, खूँखार शेर तुमको गोद में ले लेंगे, वृक्ष तुमको फल फूल देंगे । क्या मानी हमनें ? आज हम ढोंग करते हैं अपने नेता का कहना मानने का । आज हम दम्भ करते हैं अपने गुरु का अनुयायी होने का। आज हम धोखा देते हैं अपने को राष्ट्रवादी कहने का । क्या हम राष्ट्र की बात मानते हैं ? क्या हम गुरु की बात मानते हैं ? क्या हम नेता की बात मानते हैं? अगर मानते होते, तो क्या विभाजन होता ? लाखों घर बरबाद होते? अमानवता का नृत्य होता ?

इसलिए मेरे भाई ! मानव-सेवा-संघ ने कहा - यह भूल हमसे क्यों हुई? यह भूल हमसे इसलिए हुई कि हमने स्वयं अपने पर अपना नेतत्व नहीं किया। हम स्वयं अपने गुरु नहीं बने, हम स्वयं अपने शासक नहीं बने । इसी भूल को मिटाने के लिए मानव सेवा संघ ने हमें प्रकाश दिया कि 'हे मानव ! तू 'मानव’ है और मानव होने के नाते तू बड़ा सुन्दर है’ । इतना सुन्दर है कि तू अपने लिए, जगत् के लिए, जगत्पति के लिए उपयोगी हो सकता है ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 67-69)