Friday, 13 December 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Friday, 13 December 2013 
(मार्गशीर्ष मोक्षदा एकादशी, श्रीगीता जयन्ती, वि.सं.-२०७०, शुक्रवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
जानने, मानने तथा करने का स्वरूप-विवेचन - 1

       स्मृति की जो सामर्थ्य है, उसे आप चाहें अपने कर्तव्य में लगायें या दूसरे के कर्त्तव्य में लगा दें । आप कहेंगे, अच्छा, यदि हम दूसरे के कर्त्तव्य की ओर दृष्टि न डालें, तो क्या हमारा निर्वाह हो सकेगा ? अवश्य, अवश्य । आप कहें – कैसे ? तो अधिकार तो कर्त्तव्य का दास है । यदि आप कर्त्तव्य का पालन करेंगे, तो अधिकार आप के पीछे-पीछे दौड़ेगा । आप कहें - यदि हमारे अधिकार की दूसरों ने रक्षा नहीं की तो ? उस दशा में भी आपकी कोई क्षति नहीं होगी । देखिये, यदि आप यह भी मान लें कि मान लो, हमने अपने कर्त्तव्य का तो पालन किया, किन्तु दूसरों ने यदि हमारे अधिकार की रक्षा न की, तब ? तो उस दशा में भी आपकी कोई क्षति नहीं होगी । क्यों ? इसलिये नहीं होगी कि जो आपके अधिकार की रक्षा नहीं करेगा, क्षति उसकी होगी । आप कहें कि उसकी क्षति कैसे होगी ? वह करने के राग से रहित नहीं हो सकता । और जो करने के राग से रहित नहीं हो सकता, वह देह के अभिमान से रहित नहीं हो सकता । और जो देहाभिमान से रहित नहीं होता वह अपने आप ही अपना विनाश कर बैठता है । फिर आप क्यों परेशान हैं कि लोग हमारे अधिकार की रक्षा नहीं करेंगे ?

अगर लोग हमारे अधिकार की रक्षा नहीं करेंगे, तो स्वयं उनका विकास नहीं होगा, नहीं होगा, नहीं होगा । सोचिये, हम अपने कर्त्तव्य का पालन करते हैं, तो क्या दूसरों पर कोई एहसान करते हैं, नहीं-नहीं । हम कर्त्तव्यनिष्ठ होकर अपना विकास करते हैं । उसी प्रकार जो अपने कर्त्तव्य का पालन करेगा, उसका विकास होगा । किन्तु आज हम यह सोचने लगे हैं कि यदि हमारे साथी सुन्दर हो जायेंगे, तो हमारा विकास होगा । ऐसा सोचना अपने ही द्वारा अपने जीवन का घोर अपमान करना है । हमारा विकास और दूसरों के आश्रित हो ? कोई भी सजग मानव इस अपमान को सहन नहीं कर सकता । इसलिये मेरे भाई, आपका विकास आपके कर्त्तव्य में निहित है । आपका कर्त्तव्य दूसरे के अधिकार की रक्षा करता है । उसी के परिणाम स्वरूप सुन्दर समाज का निर्माण होता है, और आप करने के राग से रहित होकर योगवित् होते हैं, तत्त्ववित् होते हैं, ब्रह्मवित् होते हैं। इसमें लेशमात्र भी सन्देह की बात नहीं ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 63-64)

" आज का शुभ दिवस, मोक्षदा एकादशी, श्री गीता जयन्ती एवं स्वामी श्री शरणानन्दजी का महाप्रयाण दिवस हम सभी साधकों के लिए मंगलदायक हो  सन्तों के पावन चरणों में हम सभी साधकों का कोटी-कोटी नमन ।"
॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥