Sunday, 3 November 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 03 November 2013 
(कार्तिक अमावस्या, दीपावली, वि.सं.-२०७०, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
अपनी ओर निहारो - 1

आपकी दशा क्या है ? यदि कोई दूसरा भाई, दूसरा मजहब दूसरा इल्म, दूसरा वर्ग, दूसरा देश, हमारे साथ वह करता है, जो उसे नहीं करना चाहिये, तो हम चीखते-चिल्लाते हैं । किन्तु हम स्वयं जब अपने साथ वह करते हैं, जो नहीं करना चाहिए, तब आप सोचिये और गम्भीरता से सोचिये - जो देश का अभिमान रखते हैं, वे देशवासी विचार करें - क्या आप अपने देश के साथ वही करते हैं, जो आपको करना चाहिये ? जो परिवार का दम भरते हैं, वे भी विचार करें कि आप परिवार के साथ क्या वही करते हैं, जो आपको करना चाहिये ? क्या आप स्वयं अपने साथ वही करते हैं, जो आपको करना चाहिए ? यदि वैसा करते होते, तो मेरा यह विश्वास है - यदि यह कह दूँ तो छोटे मुँह बड़ी बात होगी - मेरा यह अनुभव है कि यदि हम अपने साथ बुराई न करते, तो संसार की सामर्थ्य नहीं कि वह हमारे साथ बुराई कर सके । यदि हम देशवासी अपने देश को स्वयं न बिगाड़ते, तो किसी की सामर्थ्य नहीं होती कि हमें बिगाड़ सकता । यह सांकेतिक भाषा है । लेकिन इसमें दर्द है, इसमें पीड़ा है । जब-जब मैं सोचता हूँ तब-तब मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि हे मानव ! तूने अपने साथ जितनी बुराई की है, कोई दूसरा तेरे साथ उतनी बुराई कभी कर ही नहीं सकता । परन्तु बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है, हृदय फटता है कहने में कि हम इस बात को भूलते ही नहीं कि दूसरों ने हमारे साथ क्या बुराई की और यह सोचते ही नहीं कि हमने अपने साथ क्या बुराई की !

मानव-सेवा-संघ कोई नई बात आपको नहीं बताता । मानव-सेवा-संघ कोई ऐसा संघ नहीं है, जो आपका अपना नहीं है । आपका मानव-सेवा-संघ आपसे यह प्रार्थना करता है कि आप कृपया अपने साथ वह न करें, जो आपको नहीं करना चाहिए । संसार में सबसे बड़ा वीर, संसार में सबसे बड़ा धीर, संसार में सबसे बड़ा गम्भीर, संसार में सबसे बडा दक्ष, संसार में सबसे बडा तत्त्वज्ञ वही हो सकता है, जो अपने साथ बुराई न करे । आप पूछ सकते हैं कि अगर हम अपने साथ बुराई न करेंगे, तो इससे समाज का क्या लाभ होगा ? मेरा आपसे नम्र निवेदन है कि यदि आप अपने साथ बुराई नहीं करेंगे, तो इससे आपका जीवन समाज के लिए उपयोगी हो जायगा । कैसे हो जायगा भाई ? बड़ी सीधी सरल बात है । वह इस प्रकार हो जायगा कि जब आप अपने साथ बुराई नहीं करेंगे, तो आप बुरे नहीं रहेंगे और जब आप बुरे नहीं रहेंगे, तब क्या होगा, उसका क्या अर्थ निकलेगा ? कर्म, कर्त्ता का चित्र है । कर्म की उत्पत्ति कर्त्ता में से होती है और सही काम से ही सुन्दर समाज का निर्माण होता है । सुन्दर समाज का निर्माण बढ़िया-बढ़िया सड्कों के बनाने में नहीं है । सुन्दर समाज का निर्माण अच्छे-अच्छे बँगले बनाने में नहीं है, सुन्दर समाज का निर्माण बहुत-सा सामान इकट्ठा करने में नहीं है । आप स्वयं सोचिये, बँगला बढ़िया हो, पर रहने वाला पागल हो । क्या इससे समाज सुन्दर हो जायगा ? यह सुन्दर समाज नहीं है। सुन्दर समाज सही काम करने से बनता है । सही काम कहाँ से निकलता है ? खेत में नहीं उपजता, पेड़ पर नहीं लगता नदियों में बह कर नहीं आता । सही काम सही कर्त्ता में से ही निकलता है । सही कर्त्ता का चित्र है, सही काम । और सही कर्त्ता कौन होता है भैया ? जो अपने साथ अपने द्वारा बुराई न करे । और अपने साथ बुराई न करने की सामर्थ्य किसमें आती है ? जो भूतकाल की घटनाओं के अर्थ को अपनाता है और घटनाओं को भूल जाता है, वही व्यक्ति अपने साथ बुराई नहीं करता ।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 20-22)