Saturday 5 October 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Saturday, 05 October 2013  
(आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७०, शनिवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
अपना कल्याण चाह-रहित होने में है

        आपके कल्याण का अर्थ क्या हुआ ? भगवान् के अधिकार की रक्षा, जगत् के अधिकार की रक्षा, जगत् के अधिकार की रक्षा करने से जगत् से मुक्ति ओर भगवान् के अधिकार की रक्षा करने से भगवत्-प्राप्ति । 

        यदि आप गम्भीर दृष्टि से विचार करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति का अस्तित्व क्या है ? समाज के अधिकारों का समूह । व्यक्ति का जीवन क्या है ? जिस जीवन से सभी के अधिकार सुरक्षित हों, उसी का नाम वास्तव में मानव-जीवन है।  मानवता इतना महत्वपूर्ण तत्व है कि जिसकी माँग सदैव सभी को रहती है ।

        आपका साधन-युक्त जीवन ही आपका अस्तित्व है । इस अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए आप अपने को मानव मान लें और छिपी हुई मानवता को विकसित कर अपने को सुन्दर बना लें । 

        सुन्दर बनने का अर्थ हो जाता है, अचाह पद । अचाह का अर्थ है - अपनी कोई चाह नहीं रहना । जहाँ अपनी कोई चाह नहीं रहती, वहाँ बन्धन नहीं रहता, पराधीनता नहीं रहती तथा जड़ता नहीं रहती । वहाँ चिन्मयता आ जाती है, स्वतन्त्रता आ जाती है और जीवन में एक ऐसी विलक्षणता आ जाती है, जिसको प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं ? परन्तु उसका अस्तित्व है । उसी जीवन को आप चिन्मय जीवन कह सकते हैं, आस्तिक जीवन कह सकते हैं, आध्यात्मिक जीवन कह सकते हैं अथवा मानव-जीवन कह सकते हैं ।

       मानव जीवन उसे कहते हैं जिसमें किसी के अधिकार का अपहरण न हो और जिस जीवन की आवश्यकता सर्वदा सभी को बनी रहे । उसी जीवन का नाम मानव-जीवन है और वह जीवन हम और आप प्राप्त कर सकते हैं । केवल प्राप्त परिस्थिति का सदुपयोग करना है । इस सदुपयोग का नाम ही किसी ने पुरुषार्थ रख दिया, किसी ने कर्त्तव्य रख दिया और किसी ने साधना रख दिया । परिस्थिति के सदुपयोग के ही ये सब नाम हैं । यदि हमें अपना कल्याण अभीष्ट है, तो अचाह होना अनिवार्य है ।

- (शेष आगेके ब्लाग में) 'मानव की माँग' पुस्तक से, (Page No. 39-40) ।