Friday, 06 September 2013
(भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७०, शुक्रवार)
(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन 1
अहम् रूपी अणु की बनावट इतनी अच्छी है कि मनुष्य स्वयं अपनी ही गलत धारणा से असत् के संग में उलझ जाता है और वह स्वयं अपनी ही सही बातों से सत् का संगी बन जाता है। मनुष्य के व्यक्तित्व के विश्लेषण में सैल्फ कनसैप्ट एक बहुत ही प्रधान बात मानी जाती है । सैल्फ कन्सैप्ट अपने सम्बन्ध में आपने क्या धारणा बनाई ? इसी के आधार पर विचार बदल जाते हैं। व्यक्तित्व बदल जाता है । व्यवहार बदल जाता है। तो सैल्फ कन्सैप्ट से अपने सम्बन्ध में अपनी एक धारणा मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निर्धारित करती है और उसके रहन-सहन, विचार-व्यवहार सबको नियन्त्रित करती है ।
बहुत विस्तार मनुष्य के व्यक्तित्व के सम्बन्ध में है। केवल इस एक बात पर कि आप अपने जीवन के सम्बन्ध में कौन-सी धारणा स्वीकार की है । हमारे शोध कार्य का विषय यही था। सैल्फ कन्सेप्ट पर ही हम रिसर्च कर रहे थे । स्वामी जी के पास बैठ करके मुझे इस बात की बहुत ही विशेषता मालूम हुई। कौन सी बात ? कि भाई, सुख-दुःख के जाल में फँसे हुए बहुत दिन निकल गए, कोई अपने मै विशेषता आयी नहीं । मनुष्य होने के नाते उसके भीतर से एक आवश्यकता महसूस होती है कि दुःख रहित जीवन चाहिए, अभाव रहित जीवन चाहिए, जन्म-मरण की बाध्यता टूट जानी चाहिए और परम प्रेम का रस जीवन में भर जाना चाहिए ।
कोई सम्प्रदाय हो, कोई प्रणाली हो, किसी वर्ग के साधक आप हैं, साकार उपासक हैं, निराकार उपासक हैं । योग के साधक हैं, ज्ञान पंथ के साधक हैं । किस मज़हब को मानने वाले हैं, कुछ अन्तर नहीं आता । ये चार बातें सर्व दुःखों की निवृत्ति, परम स्वाधीनता की प्राप्ति, सत्य का बोध, परम प्रेम का रस सबको चाहिए । मानव-मात्र को चाहिए । जिस समय हम लोग अपनी इस मौलिक माँग पर दृष्टि डालते हैं और अपने द्वारा अकेले में बैठकर के निश्चय करते हैं कि भाई, मुझे तो माँग की पूर्ति के लिए ही जीना है । अब रूचि-पूर्ति का कोई स्थान नहीं रहा जीवन में। उसी समय इतना बड़ा विकास अपने भीतर होता है कि आप देखेंगे कि सोते समय यही बात आपके ध्यान में आएगी और स्वप्न काल में पुराने संस्कारों के प्रभाव से कुछ-कुछ स्वप्न बनेंगे तो स्वप्न काल में भी यह आपका निश्चय काम करता रहेगा। और आँखें खुलते ही याद करना नहीं पड़ेगा, सहज से इस बात की याद आएगी कि अच्छा, सबेरा हो गया ओंखें खुली, अब मुझे उठना है तो मेरी माँग की पूर्ति होनी चाहिये । दुःख-निवृत्ति के लिए मुझे जीना है । परम स्वाधीनता का पुरुषार्थ मुझे करना है, परम प्रेमास्पद प्रभु से मुझे मिलना है । इस बात को याद करना नहीं पड़ेगा । आँख खुलते ही यह बात सहज से आपको याद आएगी । क्यों याद आएगी, क्योंकि आपने अपने लिए अपने द्वारा इस जीवन को स्वीकार कर लिया है ।
- (शेष आगेके ब्लाग में) 'जीवन विवेचन भाग 6 (क)' पुस्तक से, (Page No. 11-12) ।