Sunday, 22 September 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 22 September 2013  
(आश्विन कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७०, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
सुन्दर समाज का निर्माण

        सुन्दर जीवन की कसौटी यही है कि वह प्रीति से परिपूर्ण हो । प्रीति-युक्त जीवन ही सुन्दर जीवन है। ऐसे जीवन से ही प्रीति का प्रसार स्वयं होता है । प्रीति सीखने-सिखाने के लिए किसी पाठशाला की अपेक्षा नहीं है। व्यक्ति की कर्त्तव्य-निष्ठा ही समाज में प्रीति का प्रसार करती है। यह सभी का अनुभव है कि परस्पर प्रीति का संचार होने पर पशु संघर्ष स्वत: मिटने लगता है और संघर्ष मिटने पर एक अनुपम सन्तोष तथा एकता का उदय होता है । असन्तोष का मूल परस्पर का संघर्ष है संघर्ष का जन्म प्रीति के अभाव में होता है और प्रीति का अभाव तब होता है, जब हम कर्त्तव्य-निष्ठ न रहकर अपने साथी के अधिकार का अपहरण करते हैं। यह बात निर्विवाद है कि हमारे और समाज के बीच में अथवा एक दूसरे वर्ग के बीच में प्रीति के अभाव में ही संघर्ष होता है । अत: हम को कर्त्तव्यपरायणता से ही संघर्ष का अन्त करना है । उसके बिना सरकारी कानून का आधार लेना अमानवता है । जो सुन्दर समाज का स्वप्न कानून के बल पर देखना चाहते हैं, वे यह सोचते हैं कि जब हमारी सरकार सुन्दर बन जायगी या हम सरकार बन जायेंगे, तब हम सुन्दर समाज का निर्माण कर लेंगे। यह अपने को तथा समाज को धोखा देने वाली बात है । 

        जो कार्य केवल मानवता से ही हो सकता है उसे कानून, द्वारा पूरा करने का प्रयत्न केवल अपनी किसी अन्तर में छिपी हुई वासना की पूर्ति का प्रयास ही मानना चाहिये । हमारा समाज तभी सुन्दर होगा, जब हम कर्त्तव्य-परायण होंगे । जब हर एक भाई-बहिन यह सोचने लगे कि चाहे हमारे अधिकार सुरक्षित हो या न हो, हमें तो अपने कर्त्तव्य-पालन द्वारा अपने समाज के अधिकारों की रक्षा करनी है । प्रत्येक बहिन सोचे कि चाहे हमारा भाई आदर्श हो या न हो, हमें तो आदर्श बहिन होना ही चाहिए। प्रत्येक पत्नी सोचे कि पति आदर्श हो या न हो, हमें तो आदर्श पत्नी होना ही चाहिए । प्रत्येक पति यह सोचे कि पत्नी चाहे कर्कशा या कुरूपा क्यों न हो, हमें उसके अधिकारों का अपहरण नहीं करना है । ऐसे सुन्दर भाव यदि हर एक भाई-बहन के मन मैं जाग्रत् हो जायँ, तो आप देखेंगे कि आपको सरकार की भी आवश्यकता न होगी ।

- (शेष आगेके ब्लाग में) 'मानव की माँग' पुस्तक से, (Page No. 19-20) ।