Tuesday, 8 January 2013
(पौष कृष्ण सफला एकादशी, वि.सं.-२०६९, मंगलवार)
(गत ब्लाग से आगेका)
अशुद्धि क्या है ?
संकल्पों की उत्पत्ति जिसमें होती है और उनकी पूर्ति जिन साधनों से होती है, उन दोनों का जो प्रकाशक है अथवा जिससे उन दोनों को सत्ता मिलती है, उसमें जीवन-बुद्धि स्वीकार न करना अनुभूति का विरोध है, और संकल्पों की उत्पत्ति-पूर्ति में ही जीवन बुद्धि स्वीकार करना, यह निज अनुभूति का अनादर करना है । इस भूल से ही चित्त अशुद्ध हो गया है ।
अब विचार यह करना है कि संकल्पों की उत्पत्ति का उद्गम स्थान क्या है और उन संकल्पों की पूर्ति जिन साधनों से होती है, उनका स्वरूप क्या है ? जिन मान्यताओं से किसी न किसी प्रकार के भेद की उत्पत्ति होती है, उन मान्यताओं में अहम्-बुद्धि स्वीकार करने पर ही संकल्पों की उत्पत्ति होती है और जिन वस्तुओं से संकल्पों की पूर्ति होती है, वे सभी वस्तुएँ पर-प्रकाश्य हैं, परिवर्तनशील हैं और उत्पत्ति-विनाशयुक्त हैं ।
इसी कारण संकल्प-पूर्ति का सुख संकल्प-उत्पत्ति का हेतु बन जाता है । उत्पत्ति-पूर्ति का क्रम सतत चलता रहता है । उससे तद्रूप होकर प्राणी अनेक प्रकार के अभाओं में आबद्ध होकर दीनता तथा अभिमान की अग्नि में दग्ध होता रहता है । संकल्पों की उत्पत्ति-पूर्ति से अतीत के जीवन पर विश्वास हो जाय अथवा उसका अनुभव हो जाय तो प्राणी बड़ी ही सुगमतापूर्वक चिर-विश्राम पाकर कृतकृत्य हो जाता है ।
- (शेष आगेके ब्लागमें) 'चित्त-शुद्धि भाग-1' पुस्तक से, (Page No. 13-14) ।