Wednesday 16 January 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Wednesday, 16 January 2013  
(पौष शुक्ल पंचमी, वि.सं.-२०६९, बुधवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
साधन में शिथिलता क्यों आती है ?

       सहज निवृति के बिना साधन वस्तु, अवस्था एवं परिस्थिति पर ही आश्रित रहता है, जो वास्तव में परतन्त्रता है । ऐसी साधना उपर से तो साधन का अभिमान उत्पन्न करती है और भीतर से असाधन को जन्म देती है अथवा यों कहो कि साधन और असाधन में द्वन्द्व होने लगता है । बस, यही असफलता का हेतु है।

        जब तक साधक अपनी प्राप्त शक्ति को लगाकर साध्य के लिए पूर्ण उत्कण्ठा जाग्रत नहीं कर लेता, तबतक साधन में सजीवता नहीं आती, जिसके बिना यंत्रवत् साधन होता रहता है। यद्यपि साधन और साध्य दोनों ही वर्तमान जीवन की वस्तु है, परन्तु साधन की शिथिलता हमें भविष्य की आशा में आबद्ध करती है । 

        पूरी शक्ति लगाना और उत्कण्ठा की जागृति तभी सम्भव है, जब हम साधन और साध्य को वर्तमान की वस्तु मान लें । साधन उसके लिए नहीं करना है, जो उत्पत्ति-विनाशयुक्त है और न उसके लिए करना है, जिससे देश-काल की दूरी है । तो फिर साध्य को वर्तमान की वस्तु मानने में आपत्ति क्या है ? 

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'जीवन-दर्शन भाग-1' पुस्तक से, (Page No. 135) ।