Tuesday, 15 January 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Tuesday, 15 January 2013  
(पौष शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.-२०६९, मंगलवार)

साधन में शिथिलता क्यों आती है ?

        वस्तुस्थिति का अध्ययन करने पर यह प्रश्न स्वभावतः उत्पन्न होता है कि साधन में शिथिलता तथा असफलता का हेतु क्या है, जबकि वर्तमान जीवन साधनयुक्त जीवन है ? तो कहना होगा कि जब स्वार्थभाव सर्वहितकारी प्रवृति में और सर्वहितकारी प्रवृति सहज निवृति में विलीन नहीं होती, तभी साधन में शिथिलता आती है और असफलता का दर्शन होता है; अर्थात् वर्तमान में सिद्धि नहीं होती।

        जब साधन अपनी योग्यता के अनुरूप नहीं होता और साध्य वर्तमान से सम्बन्धित नहीं रहता, तब नित-नव उत्कण्ठा जाग्रत नहीं होती । उत्कण्ठा के बिना साधन में शिथिलता का आ जाना स्वाभाविक है । साधन में शिथिलता आ जाने पर, उत्साहहीनता और निराशा आदि दोष उत्पन्न होने लगते हैं ।

        यद्यपि किया हुआ साधन कभी नष्ट नहीं होता, क्योंकि साधन-तत्व नित्य है; परन्तु जिसकी उपलब्द्धि वर्तमान में हो सकती है, उसके लिए भविष्य की आशा होने लगती है, जिससे साधन का अभिमान तो रहता है, परन्तु साधन साधक का समस्त जीवन नहीं हो पाता; अर्थात् साधन जीवन का एक अंग-मात्र रह जाता है, जो कालान्तर में फल देता है ।

        अब विचार यह करना है कि साधन का आरम्भ कब होता है? विचार करने पर पता लगेगा कि जब स्वार्थभाव अर्थात् दूसरों से सुख लेने की आशा मिटने लगती है और सर्वहितकारी प्रवृति होने लगती है, तब साधन का आरम्भ होता है; परन्तु जब साधक सर्वहितकारी प्रवृति को ही जीवन मान लेता है, तब गुणों का अभिमान उत्पन्न होता है, जो सहज प्रवृति को प्राप्त नहीं होने देता । यही साधन में विघ्न है ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'जीवन-दर्शन भाग-1' पुस्तक से, (Page No. 134-135) ।