Sunday, 13 January 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 13 January 2013  
(पौष शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०६९, रविवार)

(गत ब्लाग से आगेका)
अशुद्धि क्या है ?

        वस्तुओं की दासता ने ही हमें संकल्पों की उत्पत्ति और पूर्ति के जीवन से तद्रूप कर दिया है । प्राणी वस्तुओं से ममता भले ही बनाये रखे, पर उनका वियोग तो स्वभाव से ही हो जाता है । अतः वस्तुओं के रहते हुए ही हमें उनसे असंग हो जाना चाहिए, तभी लोभ-मोह आदि दोषों की निवृति हो सकती है, जिसके होते ही चित्त स्वतः शुद्ध हो जाता है।

     अब विचार यह करना है कि संकल्प तथा वस्तु में सम्बन्ध क्या है ? वस्तुओं से संकल्प की उत्पत्ति होती है अथवा संकल्प में वस्तुएँ विद्यमान रहती हैं ? यदि कोई कहे कि वस्तुओं से संकल्प की उत्पत्ति होती है, तो संकल्प बिना वस्तुओं की प्रतीति कैसे हुई? और यदि कोई यह कहे कि संकल्प से वस्तुएँ उत्पन्न होती है, तो संकल्प-अपूर्ति का प्रश्न ही जीवन में क्यों आया ? 

        अतः न तो वस्तुओं से संकल्प की उत्पत्ति सिद्ध होती है और न संकल्प से ही वस्तुओं की । परन्तु प्राणी संकल्प के द्वारा ही वस्तुओं से सम्बन्ध स्थापित करता है । सम्बन्ध उसी से हो सकता है, जिससे किसी न किसी प्रकार की एकता तथा भिन्नता हो । इस दृष्टि से संकल्प तथा वस्तुओं में किसी न किसी प्रकार की एकता और भिन्नता अवश्य है । वस्तुओं के द्वारा सुख की आशा ने संकल्प को जन्म दिया और संकल्प-पूर्ति ने वस्तु को महत्व प्रदान किया ।

      अब विचार यह करना है कि वस्तुओं के द्वारा सुख की आशा का जन्म कैसे हुआ ? शरीररूपी वस्तु में अहम्-बुद्धि हो जाने पर वस्तुओं की कामना स्वतः उत्पन्न होती है; क्योंकि शरीर और सृष्टि के गुणों की भिन्नता और स्वरूप की एकता है । इसी कारण शरीर से तद्रूप होने पर सृष्टि से सुख की आशा उत्पन्न होती है ।

       शरीर की तद्रूपता न तो वस्तु है और न संकल्प, अपितु अविवेक है । इस दृष्टि से यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि अविवेक से ही संकल्प और वस्तु में सम्बन्ध की स्थापना हुई । 

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'चित्त-शुद्धि भाग-1' पुस्तक से, (Page No. 16-17) ।