Saturday 12 January 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Saturday, 12 January 2013  
(पौष शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०६९, शनिवार)

(गत ब्लाग से आगेका)
अशुद्धि क्या है ?

        संकल्प-पूर्ति के सुख की दासता और संकल्प-उत्पत्ति के दुःख के भय से मुक्त होने के लिए यह जान लेना अनिवार्य है कि संकल्प क्या है? वस्तुओं की सत्यता, सुन्दरता एवं सुख-रूपता का आकर्षण ही संकल्प का स्वरूप है, अथवा यों कहो कि अपने से वस्तुओं का अधिक महत्व स्वीकार करना संकल्पों में आबद्ध होना है ।

        अतः संकल्परहित होने के लिए यह आवश्यक है कि सभी वस्तुओं से अपने को विमुख कर लिया जाय । वस्तुओं से विमुख होते ही वस्तुओं की सत्यता तथा सुन्दरता शेष नहीं रहती, कारण, कि वस्तुओं की असंगता प्राणी को निर्लोभी बना देती है । निर्लोभता के आते ही वस्तुओं का मूल्य घट जाता है और फिर वस्तुओं की दासता शेष नहीं रहती । वस्तुओं की दासता मिटते ही भोग की रूचि स्वतः ही मिट जाती है और योग की लालसा जाग्रत होती है ।

        अब विचार यह करना है कि वस्तु का स्वरूप क्या है ? वस्तु उसे कहते हैं जो उत्पत्ति-विनाशयुक्त हो, परिवर्तनशील एवं पर-प्रकाश्य हो । इस दृष्टि से शरीर, इन्द्रिय, प्राण, मन, बुद्धि आदि सभी वस्तुओं के अर्थ में आ जाते हैं । इतना ही नहीं, जिसे हम सृष्टि कहते हैं, वह भी एक वस्तु ही है, क्योंकि सृष्टि, अपने को अपने आप  प्रकाशित नहीं करती ।

         हम भले ही किसी वस्तु से ममता करें, पर वस्तु भी अपनी ओर से हमें अपना नहीं कहती । इस दृष्टि से वस्तुओं से हमारी भिन्नता है, एकता नहीं । जिससे एकता नहीं है उसे अपना मान लेना, उसकी दासता में आबद्ध होना है और कुछ नहीं ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'चित्त-शुद्धि भाग-1' पुस्तक से, (Page No. 16) ।