Monday 27 August 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Monday, 27 August 2012  
(अधिक-भाद्रपद शुक्ल एकादशी , वि.सं.-२०६९, सोमवार)

 (गत ब्लागसे आगेका)
पालन-पोषण व शिक्षा पाकर ही मानव कुछ देने के योग्य होता है । इससे स्पष्ट है कि लिया हुआ देना है । परिवार के जो सदस्य समर्थ हैं वे असमर्थ बालकों और वृद्धों की सेवा करें। यह सद्भावना समाज के लिए उपयोगी है । जिसकी सेवा की जाती है उसकी अपेक्षा सेवा करनेवाले का अधिक विकास होता है।

सम्पन्न व्यक्ति दुखियों के काम आयें - क्योंकि समस्त बल निर्बलों की धरोहर है । सबके भले में ही अपना भला है । सबल व निर्बल की एकता ही समाज का सुन्दर चित्र है ।

संसार उसी को प्यार करता है जो दूसरों के काम आता है। और संसार के काम वही प्राणी आता है जो सब प्रकार से भगवान् का हो जाता है ।

पूर्ण जीवन क्या है ?- शरीर विश्व के काम आ जाए,हृदय प्रीति से छका रहे और अहम् अभिमान शून्य हो जाय।

अपनी व्यक्तिगत कोई भी वस्तु नहीं है, और एक सत्ता के सिवाय कुछ भी नहीं है । 


॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥

- (शेष आगेके ब्लागमें)