Wednesday, 22 August 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Wednesday, 22 August 2012  
(श्रावण अधिक-भाद्रपद शुक्ल पंचमी , वि.सं.-२०६९,बुधवार) 
(गत ब्लागसे आगेका)
  सब साधनों का सार

1. भक्ति : सब प्रकार से प्रेम के पात्र हो जाओ यही भक्ति है

2. मुक्ति : अपनी प्रसन्नता के लिए किसी अन्य की ओर मत देखो । यही मुक्ति है

3. त्याग : संसार की दासता मन से निकाल दो यही त्याग है

4. जो कुछ हो रहा है, वह मंगलमय विधान से हो रहा है - ऐसा मान लेने से निश्चिन्तता आती है

5. जो शरीर, प्राण आदि वस्तु व्यक्ति को अपना नहीं मानता - वह निर्भय हो जाता है ।

6. जो "है" (भगवान्) वही मेरा अपना है - इसमें जिसने आस्था स्वीकार कर ली, उसी में प्रियता उदित होती है

7. निश्चिन्तता से शान्ति, निर्भयता से स्वाधीनता तथा प्रियता से रस की अभिव्यक्ति होती है । यही मानव की माँग (लक्ष्य) है

8. उसे सब कुछ मिल जाता है जो किसी का बुरा नहीं चाहता है ।

9. कार्य उसी का सिद्ध होता है, जो दूसरों के काम (न्यायोचित काम) आता है ।

10. मोहयुक्त क्षमा, क्रोधयुक्त त्याग और लोभयुक्त उदारता निरर्थक है ।

11. भाव में पवित्रता हो, कार्य में कुशलता हो और लक्ष्य (परमात्मा) पर दृष्टि हो, तो प्रत्येक प्रवृति से परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) .......