गुरु
जो किसी का भी गुरु बनेगा, वह अपना गुरु नहीं बन सकता और जो अपना गुरु नहीं बन सकता, वह जगत का गुरु नहीं बन सकता | संत वाणी ४/२१
गुरु के मिलने का मालूम है, फल क्या है ? गुरु हो जाना | संत वाणी ४/१७५
विवेक ही वास्तव में गुरु तत्त्व है | कोई व्यक्ति किसी का गुरु है - इसके सामान कोई भूल ही नहीं है | कोई भी व्यक्ति किसी का भी सुधारक है - इसके सामान कोई भूल नहीं | मानव का अपना विवेक ही अपना सुधारक है, वही उसका गुरु है, वही उसका नेता है, वही उसका शासक है | संत वाणी ५/२५२
गुरु की सबसे बड़ी भक्ति यह है की गुरु मिलना चाहे और सिष्य कहे की जरुरत नहीं है ; क्योकि जिसने गुरु की बात को अपनाया,उसमे गुरु का अवतरण हो जाता है | संत वाणी ७/१४९
सच्चा गुरु वही है, जिसके जीवन से साधको को प्रकाश मिलता है | सिद्धांत की चर्चा करने मात्र से वास्तव में गुरु पद नहीं मिल जाता | जीवन पथ ७८
विवेक को ही ज्ञान कहते है | ज्ञानरूपी जो गुरु है उसकी बात मान लोगे तो शरीर रुपी गुरु की जरुरत नहीं पड़ेगी | साधन त्रिवेणी ७६
अपने दोषों का ज्ञान जितना अपने को होता है उतना अन्य को हो ही नहीं सकता |..... अत दोष देखने और निवारण करने के लिए साधक को अपने ही ज्ञान को अपना गुरु बना लेना चाहिए | जीवन दर्शन ८१
जो निज स्वरुप का आदर करता है वह गुरु, इश्वर तथा संसार आदि को अपने में ही पा लेता है | संत समागम १/२४०
सास्त्रो में नेता या गुरु बनने को पतन का हेतु माना है | इससे सिद्ध होता है की यह काम महापुरुषों के ही उपयुक्त है | साधको को इस बखेड़े में कभी नहीं पड़ना चाहिए | संत सौरभ ५१
गुरु, ग्रन्थ, और सत-चर्चा साधक में विद्यमान विवेक शक्ति को विकसित कर सकते है | कोई नयी शक्ति प्रदान नहीं कर सकते | संत सौरभ ९२