Tuesday 14 August 2012

गुरु

गुरु 


जो किसी का भी गुरु बनेगा, वह अपना गुरु नहीं बन सकता और जो अपना गुरु नहीं बन सकता, वह जगत का गुरु नहीं बन सकता |  संत वाणी ४/२१

गुरु के मिलने का मालूम है, फल क्या है ? गुरु हो जाना |  संत वाणी ४/१७५

विवेक ही वास्तव में गुरु तत्त्व है | कोई व्यक्ति किसी का गुरु है - इसके सामान कोई भूल ही नहीं है | कोई भी व्यक्ति किसी का भी सुधारक है - इसके सामान  कोई भूल नहीं | मानव का अपना विवेक ही अपना सुधारक है, वही उसका गुरु है, वही उसका नेता है, वही उसका शासक  है |  संत वाणी ५/२५२

गुरु की सबसे बड़ी भक्ति यह है की गुरु मिलना चाहे और सिष्य कहे की जरुरत नहीं है ; क्योकि जिसने गुरु की बात को अपनाया,उसमे गुरु का अवतरण हो जाता है |  संत वाणी ७/१४९

सच्चा गुरु वही है, जिसके जीवन से साधको को प्रकाश मिलता है | सिद्धांत की  चर्चा करने मात्र से वास्तव में  गुरु पद नहीं मिल जाता |  जीवन पथ ७८

विवेक को ही ज्ञान कहते है | ज्ञानरूपी जो गुरु है उसकी बात मान लोगे तो शरीर रुपी गुरु की जरुरत नहीं पड़ेगी | साधन त्रिवेणी ७६

अपने दोषों का ज्ञान जितना अपने को होता है उतना अन्य को हो ही नहीं सकता |..... अत दोष देखने और निवारण करने के लिए साधक को अपने ही ज्ञान को अपना गुरु बना लेना चाहिए |  जीवन दर्शन ८१

जो निज  स्वरुप  का आदर  करता  है वह गुरु,  इश्वर तथा संसार आदि को अपने में ही पा लेता है |   संत समागम १/२४०

सास्त्रो    में नेता या गुरु बनने  को पतन का हेतु माना है  | इससे सिद्ध होता है की यह काम महापुरुषों के ही उपयुक्त है | साधको को इस  बखेड़े  में कभी नहीं पड़ना चाहिए | संत सौरभ ५१

गुरु, ग्रन्थ, और सत-चर्चा  साधक में विद्यमान विवेक शक्ति  को विकसित कर सकते है | कोई नयी शक्ति प्रदान नहीं कर सकते |  संत सौरभ ९२