सेवा
यदि आपको वस्तु नहीं मिलती तो इसका अर्थ यह है की आपने बल दुसरो की सेवा में लगाया ही नहीं | संत वाणी ३/३९
सेवक हम कब होंगे ? जब यह अनुभव करे की मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिए ? संत वाणी ७/३७
सेवा करने से मोह का नाश होता है और प्यार पुष्ट होता है | संत वाणी ७/१३८
जिसे अपने लिए कुछ नहीं करना होता, वही सेवा कर पता है | संत वाणी ७/१४८
भलाई का फल मत चाहो , और बुरे रहित हो जाओ, यही तो सेवा का स्वरुप है | साधन त्रिवेणी २९
भोगी के द्वारा सेवा की बात सेवा का उपहास है, और कुछ नहीं | मानव दर्शन १४७
सेवा त्याग की भूमि तथा प्रेम की जननी है | जीवन दर्शन १८९
लोभ और मोह में आबद्ध प्राणी सेवा नहीं कर सकता | जीवन दर्शन १८९
सेवा का मूल्य प्रभु देता है, संसार नहीं दे सकता | संत-जीवन-दर्सन ९७
सेवा भाव है कर्म नहीं | इस दृष्टी से छोटी या बड़ी सेवा समान अर्थ रखती है | सेवा का स्वरुप है प्राप्त सुख किसी दुखी की भेट कर देना और उसके बदले में सेवक कहलाने तक की आशा न करना | चितसुधि २९७