Sunday, 12 August 2012

सेवा

सेवा

यदि आपको वस्तु नहीं मिलती तो इसका अर्थ यह है की आपने बल दुसरो की सेवा में लगाया  ही नहीं |  संत वाणी ३/३९

सेवक हम कब होंगे ? जब यह अनुभव करे की मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिए ?    संत वाणी ७/३७

सेवा करने से मोह का नाश होता है और प्यार पुष्ट   होता है |   संत वाणी ७/१३८

जिसे अपने लिए कुछ नहीं करना होता, वही सेवा कर पता है |   संत वाणी ७/१४८

भलाई का फल मत चाहो , और बुरे रहित हो जाओ, यही तो सेवा का स्वरुप है |  साधन त्रिवेणी २९

भोगी के द्वारा सेवा की बात सेवा का उपहास है, और कुछ नहीं |  मानव दर्शन १४७

सेवा त्याग की भूमि तथा प्रेम की जननी है |  जीवन दर्शन १८९

लोभ और मोह में आबद्ध प्राणी सेवा नहीं कर सकता |  
जीवन दर्शन १८९ 

सेवा का मूल्य प्रभु देता है, संसार नहीं दे सकता |   संत-जीवन-दर्सन ९७

सेवा भाव है कर्म नहीं | इस दृष्टी से छोटी या बड़ी सेवा समान अर्थ रखती है  | सेवा का स्वरुप है प्राप्त सुख किसी दुखी की भेट कर देना और उसके बदले में सेवक कहलाने तक की आशा न करना | चितसुधि २९७