Sunday, 16 October 2011

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 16 October 2011
(कर्तिक कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०६८, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
प्रश्नोत्तरी

प्रश्न - सच्चा सुख मानव को कब और कैसे मिल सकता है ?
उत्तर - वास्तव में मानव जीवन की यही सबसे बड़ी समस्या है । इसके हल करने में प्राणी सदा स्वतन्त्र है । इस प्रश्न पर गम्भीरतापूर्वक विचार न करना बड़ी भारी भूल है ।
        मानवता प्राप्त होने पर मनुष्य को वह सुख मिल जाता है जिसमें दुःख नहीं होता अर्थात् सच्चा सुख मिल जाता है ।
         सहज भाव से मूक भाषा में प्रेम-पात्र से प्रार्थना करो - "हे नाथ ! इस हृदय को अपनी प्रीति से भर दो । इस शरीर को दुखियों की सेवा में लगा दो । बुद्धि को विवेकवती बना दो । इस जगत् रूपी  वाटिका में मुझे एक सुन्दर पुष्प बना दो । मैं सदा आपकी कृपा की प्रतीक्षा में रहूँ।" ऐसी प्रार्थना करने से प्रेम-पात्र तुम्हें अपनी सेवा करने के योग्य अवश्य बना लेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है ।

प्रश्न - शारीरिक कष्टों को कैसे भूला जाय ?
उत्तर - भूला नहीं जाय, सहा जाय - चिंता एवं विलाप से रहित होकर । यह तप है । तप से शक्ति बढ़ती है । भूलने से तो जड़ता आवेगी । शरीर से तितिक्षा होनी चाहिए । तितिक्षा का अर्थ है, हर्षपूर्वक कष्ट को सहन करना ।

प्रश्न - मानव-सेवा-संघ की पहली प्रार्थना में यह कहा जाता है कि दुखियों के हृदय में त्याग का बल प्रदान करें । दुःखी बेचारा क्या त्याग करेगा ?
उत्तर - जब मनुष्य कुछ चाहता है और उसका चाहा नहीं होता है, तो वह दुःख का अनुभव करता है । इससे सिद्ध हुआ कि दुःख का कारण 'चाह' है । अतः अगर दुःखी दुःख से छुट्टी पाना चाहता है, तो उसे चाह का त्याग कर देना चाहिए । चाह का त्याग करने में मानव-मात्र स्वाधीन है ।

(शेष आगेके ब्लागमें)
-'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक से, पृष्ठ सं॰ १० (Page No. 10) ।