Tuesday 19 November 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Tuesday, 19 November 2013 
(मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया, वि.सं.-२०७०, मंगलवार)

अपनी ओर निहारो - 3

हम स्वयं अपने नेता बनें और यह समझें कि नेता किसे कहते हैं ? और राष्ट्र किसे कहते हैं? राष्ट्र में बल का उपयोग होता है और जो नेता है, वह समझदारी का उपयोग करता है, समझाता-बुझाता है । नेता उसी को कहते हैं । आपके जीवन में जो बुद्धि का स्तर है, समाज में वही नेता का स्तर है। आपके जीवन में जो मन का स्थान है, समाज में वही राष्ट्र का स्थान है । मन के द्वारा इन्द्रियों पर शासन होता है, किन्तु बुद्धि के द्वारा हम स्वयं अपने को समझाते हैं । जो अपने को समझा सके । क्या समझा सके ? समझा सके कि जाने हुये का अनादर नहीं करूँगा, मिले हुये का दुरुपयोग नहीं करूँगा, सुने हुये प्रभु में अश्रद्धा नहीं करूँगा । आप श्रद्धा करें या न करें, आपकी रुचि।

अगर आपने अपने को यह समझा लिया कि मैं जाने हुये का अनादर नहीं करूँगा, मिले हुये का दुरुपयोग नहीं करूँगा, सुने हुये प्रभु में अश्रद्धा नहीं करूँगा, तब परिणाम होगा कि जाने हुये का अनादर न करने से, सिर्फ अनादर न करने से, क्या होगा ? जब आप जाने हुये का अनादर नहीं करेंगे, तब आपके जीवन में तीन प्रकार की स्मृति जाग्रत होगी, - कर्त्तव्य की स्मृति, स्वरूप की स्मृति और अपने प्रभु की स्मृति, अथवा यों कहिये कि जब आप जाने हुये का अनादर नहीं करेंगे, तब आपके जीवन में से राग का नाश होगा, असंगता प्राप्त होगी । आपके जीवन में से अकर्त्तव्य का नाश होगा, कर्त्तव्य-परायणता प्राप्त होगी । आपके जीवन में से आसक्तियों का नाश होगा, प्रेम का प्रादुर्भाव होगा । जाने हुये के आदर में ही कर्त्तव्य-परायणता, असंगता और आत्मीयता निहित है । दूसरी बात यह कि जब आप मिले हुये का दुरुपयोग नहीं करेंगे, तब सबल और निर्बल में एकता होगी। यह जो सुन्दर समाज का निर्माण होता है, यह खाली स्कीमों से नहीं होता है, योजनाओं से नहीं होता है, कानूनों से नहीं होता है । सुन्दर समाज का निर्माण होता है - बल का दुरुपयोग न करने से, मिले हुये का दुरुपयोग न करने से।


 - (शेष आगेके ब्लाग में) ‘प्रेरणा पथ' पुस्तक से, (Page No. 28- 29)