Sunday 29 September 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Sunday, 29 September 2013  
(आश्विन कृष्ण दशमीं, वि.सं.-२०७०, रविवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
सुन्दर समाज का निर्माण

        विवेक-युक्त जीवन ही वास्तव में मानवता है । उसी के आधार पर जब हम अपने को सुन्दर बनाते हैं, तो वही वास्तविक व्यक्तिवाद है और जब अपने चरित्र द्वारा मानवता का प्रसार समाज में किया जाता है, तो वही वास्तविक समाजवाद है । उस मानवता को ही विधान का रूप देकर जब बल-प्रयोग द्वारा समाज में प्रसार करने का प्रयास किया जाता है तो वही वास्तव में राष्ट्रवाद है । अत: यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि निज-विवेक के प्रकाश में साधन-युक्त जीवन से निर्दोषता प्राप्त करना ही मानवता है और वही मानवता स्थल-भेद से, कहीं व्यक्तिवाद, कहीं राष्ट्रवाद, कहीं समाजवाद आदि मान्यताओं से नाम तथा आदर पाती हैं ।

        मानवता प्राप्त करने में सभी भाई-बहिन सर्वथा स्वतन्त्र हैं। हमसे कोई ऐसा कार्य न हो, जिसे हम अपने साथ कराना नहीं चाहते । और जो हम अपने प्रति दूसरों से कराना चाहते हैं, - वह हम दूसरों के प्रति करने के लिए सर्वदा उद्यत बने रहें । तभी हम अपने में विद्यमान मानवता को विकसित कर सकेंगे । मानवता विकसित हो जाने पर जीवन की सभी समस्याएँ हल हो जायेंगी। अत: मानव को अपने में छिपी हुई मानवता को विकसित करने के लिए सर्वदा अथक प्रयत्न करना चाहिए । मानवता आ जाने पर ही हम सुन्दर होंगे, हमारा समाज और राष्ट्र सुन्दर होगा। मानवता में ही हमारा कल्याण तथा सुन्दर समाज का निर्माण निहित है ।। ऊँ । ।

- 'मानव की माँग' पुस्तक से, (Page No. 29-30) ।