Friday 18 January 2013

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Friday, 18 January 2013  
(पौष शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०६९, शुक्रवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
साधन में शिथिलता क्यों आती है ?

        सत् की खोज असत् के त्याग में है, असत् के द्वारा नहीं । असत् का त्याग वर्तमान में हो सकता है । अतः सत् की प्राप्ति वर्तमान जीवन की वस्तु है, क्योंकि जब अपने द्वारा अपने प्रियतम को अपने ही में पाना है, तब उसके लिए श्रम तथा काल की अपेक्षा ही क्या है ? जिस साधन के लिए श्रम तथा काल अपेक्षित नहीं है, वही निवृति का साधन है । वह निवृति का साधन उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने को समर्पण कर देते है ।

        सर्वहितकारी वृतियों का स्फुरण ही 'प्रवृति-मार्ग' है और वृतियों का स्फुरण न होना ही 'निवृति-मार्ग' है । सिमित बल तथा सामर्थ्य के द्वारा असीम तथा अनन्त की प्राप्ति सम्भव नहीं है । इस कारण समर्पण ही अन्तिम साधन है । पर वह उन्हीं साधकों को प्राप्त होता है, जो निर्बल हैं तथा जो गुणों के अभिमान से रहित हैं ।

        गुणों के अभिमान से रहित होते ही अनन्त की कृपाशक्ति स्वतः सब कुछ करने लगती है । फिर न साधन में शिथिलता आती है और न असफलता के लिए ही कोई स्थान रहता है; क्योंकि साधन में शिथिलता और असफलता तभी तक जीवित है, जब तक साधक अपने सिमित बल, योग्यता एवं गुणों के द्वारा सफलता की आशा करता है । 

- 'जीवन-दर्शन भाग-1' पुस्तक से, (Page No. 136) ।