उदगार
शरीर सदैव म्रत्यु में रहता है , और मैं सदेव अमरत्व मैं रहता हु , यह मेरा परिचय है | प्रबोधनी १
अरे दुनिया के दुखियो ! अब देर मत करो ! व्याकुल ह्रदय से आनंदघन भगवान् को बुलाओ , वे अवश्य आयेंगे, आयेंगे, आयेंगे | संत पत्रावली १/७२
हे पतितपावन सर्वसमर्थ भगवान् ! आप अपनी और देख कर अपने इस पतित प्राणी को अपनाइए , जिससे इसका उद्धार तथा आपका नाम सार्थक हो | संत पत्रावली १/८०
तुम यह बात अपने मन से सदा के लिए निकल दो की मेरे समीप आने पर ही मेरी सेवा होगी | तुम जितना अपने को सुन्दर बना लोगे ,उतनी ही मुझे प्रसन्नता होगी और वही मेरी सच्ची सेवा होगी | संत पत्रावली २/३५
वास्तव में तो मानव मात्र के अनुभूति ही मानव-सेवा-संघ का साहित्य है | पाथेय १०३
जिसने जाने हुए असत के त्याग द्वारा असाधन का अंत कर साधन परायणता प्राप्त की, उसने तो मेरी बड़ी सेवा की है | जो अपने लिए तथा जगत के लिए एवं प्यारे प्रभु के लिए उपयोगी है , वही मुझे परम प्रिय है | पाथेय १३०
तुम कभी अपने स्वरुप को मत भूलो | यही मेरी सर्वोतकर्स्ट सेवा है | पाथेय ३२४
गीता के रचियता से मेरा बड़ा भरी सम्बन्ध है | वे मेरे बड़े मित्र है | मैं गीता का बड़ा आदर करता हु ; क्युकी यह मेरे दोस्त की बातचीत है | संतवाणी ७/१६९
मेरा बचा हुआ काम है - सोयी मानवता को जगाना | संतवाणी ३/४०
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