Friday 23 March 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Friday, 23 March 2012
(चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, नव-वर्ष, वि.सं.-२०६९, शुक्रवार)

(गत ब्लागसे आगेका) 
प्रवचन - 4

        सेवा और त्याग का फल क्या है? सुख की दासता और दुःख के भय का नाश । जब सुख की दासता और दुःख के भय का नाश हुआ, तब क्या होगा ? स्वाधीनता, चिन्मयता, चिर-शान्ति, अमरत्व । यह क्या है? अध्यात्म जीवन । तो फिर भौतिकवाद की जो साधना है, उससे क्या हुआ ? अध्यात्म जीवन में प्रवेश हुआ ।

        इस दृष्टि से भौतिकवाद और अध्यात्मवाद अलग-अलग नहीं हैं । एक ही जीवन के दो पहलू हैं । भौतिकवाद ने कर्तव्यपरायणता का पाठ पढाया, तो अध्यात्मवाद ने अमर बनाया क्योंकि हमको-आपको अमरत्व की भी आवश्यकता है और भाई कर्तव्य की भी आवश्यकता है । इसलिए भौतिकवाद भी जीवन का एक अंग है और अध्यात्मवाद भी जीवन का एक अंग है ।

        पर यहीं उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो जाती । इसके बाद प्रार्थना में यह बताया कि हम सेवा और त्याग का बल किस लिए माँगते हैं ? इसलिए माँगते हैं जिससे यह अर्थात् सारा विश्व सुख की दासता और दुःख के भय से मुक्त हो जाय । अब सुख की दासता और दुःख के भय से किस लिए मुक्त होना है ? तब यह प्रार्थना की गई कि आपके पवित्र प्रेम का आस्वादन करने के लिए ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी प्रवचनमाला, भाग-8' पुस्तक से, (Page No. 50-51) ।