Saturday 10 March 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Saturday, 10 March 2012
(चैत्र कृष्ण द्वितीया, वि.सं.-२०६८, शनिवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
सन्त उद्बोधन

9.    सही काम करने से मनुष्य काम-रहित हो जाता है । काम-रहित होने से योग की प्राप्ति होती है । योग की पूर्णता में बोध और प्रेम है ।

10.    जो नहीं कर सकते हो, उसे करने की सोचो मत और जो नहीं करना चाहिए उसे करो मत । जो कर सकते हो, उसे जमा मत रखो, कर डालो । उसके अन्त में आपको योग की प्राप्ति हो जाएगी ।

11.    भोग जब आप करते हैं, तो भोगे हुए का प्रभाव मन पर अंकित हो जाता है, उसका संस्कार जमता है और जब आप शान्त होते हैं, तब वही प्रकट होता है । वह प्रकट होता है नाश होने के लिए, वह नया कर्म नहीं है । आपके भोजन कर लेने के बाद जैसे आपका भोजन बिना जाने और बिना कुछ किए पचता है । तो एक होता है 'करना' और एक होता है 'होना' । ........ तो होने वाली बात को कर्म मत मानो, वह कर्म नहीं है । अगर उससे असहयोग कर लोगे, तो उसका प्रभाव अपने आप नाश हो जाएगा।

12.    संसार से सम्बन्ध है सेवा करने के लिए और परमात्मा से सम्बन्ध है प्रेम करने के लिए । न संसार से कुछ चाहिए, न परमात्मा से कुछ चाहिए ।

13.    संकल्प तो भुक्त इच्छाओं का प्रभाव है और जो पहले भोग कर चुके हैं, उसी के प्रभाव से उठता है ।

14.    संकल्पपूर्ति का सुख ही नवीन संकल्प को जन्म देता है । यदि हम संकल्पपूर्ति का सुख पसन्द करते रहेंगे, तो एक के बाद एक नवीन संकल्प उत्पन्न होता ही रहेगा और अभाव-ही-अभाव पल्ले पड़ेगा ।

15.    संकल्पपूर्ति का सुख मत भोगो व संकल्प-निवृति की शान्ति में रमण मत करो । बस, तब जीवन-मुक्ति प्राप्ति हो जाएगी । 

16.    ज्ञान और सामर्थ्य के अनुसार जो संकल्प उठे, उसे पूरा करके खत्म कर दो । संकल्प वह पूरा करना है जिसमें दूसरों का हित है । उसी को कर्तव्य कहते हैं ।

17.    जो संकल्प कभी पूरा न हो, बार-बार उठे वह ज्ञान विरोधी है, सामर्थ्य विरोधी है । अतः उसका त्याग कर दो । इस प्रकार आप निर्विकल्प हो जाएँगे ।

(शेष आगेके ब्लागमें) - ‘सन्त उद्बोधन’ पुस्तक से (Page No. 11-13) [For details, please read the book]