Wednesday 7 March 2012

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Wednesday, 07 March 2012
(फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०६८, बुधवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
सन्त हृदयोद्गार

82.    आप सच मानिए, सिद्धि वर्तमान में ही होती है। भविष्य में कभी सिद्धि नहीं होती । भविष्य में तो उसकी प्राप्ति होती है, जो वर्तमान में नहीं है अर्थात् जिसकी उत्पत्ति हो । ........... जरा सोचिए, साध्य तो हो वर्तमान में, और साधक यह माने कि हमें भविष्य में मिलेगा ! जरा ध्यान दीजिए, साध्य तो है वर्तमान में, और मिलेगा भविष्य में !

83.    मानव को प्रभु दण्ड नहीं देता, विधान मानव को दण्ड नहीं देता, तो फिर क्या देता है ? जिस परिस्थिति से आपका विकास होता है, वही परिस्थिति आपको देता है ।

84.    यह दिमागी कौतूहल है कि किसी परिस्थिति-विशेष की प्राप्ति से हम वह हो जाएँगे, जो हम आज नहीं हैं । सरकार, यहीं रहेंगे, यहीं । अन्तर यही होगा कि आप तीन बटा चार न लिखकर पचहत्तर बटा सौ लिखियेगा ।

85.    प्राकृतिक नियमानुसार प्रत्येक परिस्थिति मंगलमय है, इसी ध्रुव सत्य के कारण जो हो रहा है, वही ठीक है ।

86.    प्रतिकूल परिस्थिति भोग में भले ही बाधक हो, पर योग में नहीं ।

87.    ऐसी कोई अनुकूलता है ही नहीं, जिसने प्रतिकूलता को जन्म न दिया हो और न ऐसी कोई प्रतिकूलता ही है, जिसमें प्राणी का हित न हो ।

88.    जितने आस्तिक होते हैं, वे प्रत्येक प्रतिकूलता में अपने परम प्रेमास्पद की अनुकूलता का अनुभव करते हैं कि अब हमारे प्यारे ने अपने मन की बात करना आरम्भ कर दिया । अब वे हमें जरूर अपनायेंगे ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्त हृदयोद्गार' पुस्तक से ।