Friday 16 December 2011

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Friday, 16 December 2011
(पौष कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०६८, शुक्रवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1

        कोई कहता है - धन बाँट दो गरीबी मिट जाएगी । कोई कहता है - धन छीन लो गरीबी मिट जाएगी । कोई कहता है - कर्ज दे दो गरीबी मिट जाएगी। क्या तमाशा बना रखा है ?

        एक आदमी की गरीबी सारा संसार मिल कर मिटाना चाहे तो नहीं मिटा सकता और यदि आप अपनी गरीबी मिटाना चाहे तो अभी-अभी हम और आप अपनी गरीबी को मिटा सकते हैं। कैसे ? बल का सदुपयोग करके, ज्ञान का आदर करके, निर्विकल्प विश्वास करके हम अपनी गरीबी मिटा सकते हैं । क्यों ? बल के सदुपयोग से कर्तव्यपरायणता आ जाएगी । कर्तव्यपरायणता से हम राग-रहित हो जाएँगे, ज्ञान के आदर से हम निर्मम, निष्काम और असंग होकर क्रोध-रहित हो जाएँगे, विषमता-रहित हो जाएँगे, पराधीनता-रहित हो जाएँगे और आत्मीयता से जाग्रत प्रियता से नीरसता-रहित हो जाएँगे और इस प्रकार गरीबी मिट जाएगी ।

        गरीबी मिटाने का उपाय वैज्ञानिक के पास नहीं है । गरीबी मिटाने का उपाय किसी कलाकार के पास नहीं है । गरीबी मिटाने का उपाय किसी साहित्यिक के पास नहीं है । गरीबी मिटाने का उपाय तो मानव-मात्र के पास है । वह क्या है ? सत्संग । सत्संग से गरीबी मिटेगी । क्यों ? अब इसको जरा वैज्ञानिक दृष्टि से सोचिए - वैज्ञानिक दृष्टि से ।

        वैज्ञानिक तथ्य क्या है ? आप अनुभव करके देखें । अगर हमारे जीवन में निर्लोभता आ जाती तो हम संग्रही होते क्या? बोलो, अनुदार होते क्या ? अगर हमारे जीवन में निर्लोभता आ जाती तो हम भिखारी होते क्या ? बोलो । भिखारी भी नहीं होते, अनुदार भी नहीं होते, संग्रही भी नहीं होते । जिसके जीवन में भिखारी-पन चला गया, अनुदारता चली गयी, संग्रह चला गया, वहाँ गरीबी टिकेगी ? क्या राय है ? कभी भी नहीं रह सकती है। यह इतना जबरदस्त भ्रम है हम लोगों को ।

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 14-15)