Wednesday 14 December 2011

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

Wednesday, 14 December 2011
(पौष कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०६८, बुधवार)

(गत ब्लागसे आगेका)
प्रवचन - 1

        कल्पना करो, आज का सुधारवादी नेता धूम मचाए हुए है कि गरीबी मिटाओ, गरीबी मिटाओ । मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूँ । एक उदाहरण आपके सामने रखना चाहता हूँ। आप मुझको यह बताइये कि गरीबी कहाँ नहीं है। कोई ऐसा देश बताइये, कोई ऐसा वर्ग बताइये जहाँ गरीबी न हो। जहाँ बहुत बड़ी अमीरी दिखाई देती है वहाँ गरीबी का दर्शन होता है या नहीं । अगर कोई ईमानदार मानव इस बात को सिद्ध कर दे कि हमने अमुक परिस्थिति में ऐसा पाया कि जहाँ गरीबी नहीं थी ।

        गरीबी का अर्थ जरा सोचिए तो सही । जबतक हमको उससे (परमात्मा से) भिन्न, जो अपने में है कुछ भी चाहिए, तबतक गरीबी मिट सकती है क्या ? बोलो भई बोलो । जबतक हमें वह चाहिए जो अपने में नहीं है, जो अभी नहीं है उससे भिन्न यदि चाहिए तो गरीबी मिट सकती है क्या ? हाँ, गरीबी का रूप बदल जाएगा । रूप क्या बदल जाएगा ? जैसे 3/4 लिखते हैं न, उसे कोई 75/100 लिख दे । तो देखने में तो बहुत बड़ी संख्या हो गयी, पर अर्थ में क्या अन्तर पड़ा ?

        हमसे बताइये, एक व्यक्ति को बताइये, जो ईमानदारी से यह कह सके कि परिस्थिति के आश्रित होकर, संसार के आश्रित होकर मेरे सभी संकल्प पुरे हो गए । ऐसा कोई नहीं मिलेगा । सारे विश्व में नहीं मिलेगा । इतना ही नहीं, दूसरी यह बात भी कि कोई ऐसा आदमी भी नहीं मिलेगा जो कहे कि मेरा कोई संकल्प पूरा नहीं हुआ । भई, जब सभी संकल्प किसी के पुरे नहीं होते और कुछ संकल्प सभी के पुरे होते हैं । यदि यह जीवन का सत्य है तो निःसंकल्प हुए बिना गरीबी कैसे मिटेगी ?

        गम्भीरता से विचार किया जाय, बड़े धीरज से इस बात पर विचार किया जाय कि जबतक हम निर्विकल्प नहीं होते तबतक गरीबी कैसे मिटेगी ? जबतक निःसंकल्प नहीं होंगें तबतक निर्विकल्प होंगे कैसे ? निर्मम होने से निःसंकल्प होंगे, निःसंकल्प होने से निर्विकल्प होंगे । निर्विकल्प होने से गरीबी क्यों मिटेगी ? इसलिए मिटेगी कि जीवन अभी है, अपने में है। इसलिए गरीबी मिटेगी ।

        अगर जीवन अपने में न होता, तो निर्विकल्प होने से गरीबी कभी नहीं मिटती । किन्तु महानुभाव, हम इस वास्तविकता पर विचार नहीं करते, जीवन का अध्ययन नहीं करते, जीवन के सत्य को स्वीकार नहीं करते ।  

- (शेष आगेके ब्लागमें) 'सन्तवाणी, भाग - 8' पुस्तक से । (Page No. 12-13)